गणेश पूजा

जन पूर्व की दिशा में मुँह करके करें।
पूजन सामग्री की सूची पृथक से दी गई है, वहाँ पर देखें।
पूजन शुरू करने के पूर्व समस्त पूजन सामग्री अपने आसपास इस तरह जमा लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न आए।
पूजन में किन-किन सावधानियों को रखना आवश्यक है, इसकी जानकारी भी पृथक से दी गई है, वहाँ से प्राप्त करें।
पूजन श्री गणेशजी की प्रतिमा पर किया जाता है।
श्री गणेशजी की प्रतिमा न होने पर :-
एक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर, श्री गणेश की भावना करके, पाटे पर अन्न बिछाकर उस पर स्थापित किया जाता है। सुपारी पर ही संपूर्ण पूजन किया जाता है।
श्रीगणेश की मृत्तिका (मिट्टी) की मूर्ति का पूजन कर रहे हों, तो :-
उस मूर्ति के स्थान पर स्नान, पंचामृत स्नान कराने के लिए एक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर, उस सुपारी को गणेशजी की प्रतिमा के सामने स्थापित कर दें। स्नान, पंचामृत स्नान, अभिषेक इत्यादि कर्म उस सुपारी पर ही किए जाते हैं, मृत्तिका की गणेश प्रतिमा पर नहीं।
पूजन प्रारं भ
पूजन प्रारंभ करने हेतु शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करके, इष्ट देवता की दाहिनी दिशा में अक्षत बिछाकर उस पर रखे दें। दीपक प्रज्ज्वलित कर, हाथ धो लें।
दीप पूजन :- (हाथ में गंध एवं पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलकर दीपक पर गंध-पुष्प अर्पित करें)
मंत्र :- 'ॐ दीप ज्योतिषे नमः'
प्रणाम करें।
( उक्त मंत्र बोलकर गंध व पुष्प, दीपक पर अर्पित करें)
आचमन :- (अब निम्न मंत्र बोलते हुए तीन बार आचमन करें-
ॐ केशवाय नमः स्वाहा (आचमन करें)
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा (आचमन करें)
ॐ माधवाय नमः स्वाहा (आचमन करें)
( निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें)
ॐ हृषीकेशाय नमः हस्तम् प्रक्षालयामि
तत्पश्चात तीन बार प्राणायाम करें।
पवित्रकरण :- (प्राणायाम के बाद अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें)- 'ॐ अपवित्रह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम् गतो-अपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरी-काक्षम् स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि॥
ॐ पुण्डरी-काक्षह पुनातु।'
( पश्चात् निम्न मंत्रों का पाठ करें)-
स्वस्तिवाचन :स्वस्ति न इन्द्रो वृद्ध-श्रवाहा स्वस्ति नह पूषा विश्व-वेदाहा।
स्वस्ति नह-ताक्ष्-र्यो अरिष्ट-नेमिति स्वस्ति नो बृहस्पतिहि-दधातु॥
द्यौहो शन्ति-हि-अन्तरिक्ष (गुं) शान्तिर्-हि शान्तिहि-आपह।
शान्ति हि ओषधयह् शान्तिहि।
वनस्-पतयह-शान्तिहि विश्वे देवाहा शान्तिहि ब्रह्म शान्तिहि सर्व (गुं)
शान्ति हि एव शान्तिहि सा मा शान्ति हि- ऐधि॥
यतो यतह समिहसे ततो न अभयम् कुरु।
शम् नह कुरु प्रजाभ्योअभयम् नह पशुभ्यहा॥
सुशान्तिहि भवतु ।
श्रीमन् महागण अधिपतये नमह।
लक्ष्मी-नारायणाभ्याम् नमह। उमामहेश्वराभ्याम् नमह।
मातृ पितृ चरण कमलैभ्यो नमह।
इष्ट-देवताभ्यो नमह। कुलदेवताभ्यो नमह।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमह। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमह।
सुमुखह एक-दन्तह च। कपिलो गज-कर्णकह।
लम्बोदरह-च विकटो विघ्ननाशो विनायकह॥1॥
धूम्रकेतुहु-गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननह।
द्वादश-एतानि नामानि यह पठेत् श्रृणुयात-अपि॥2॥
विद्या-आरम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे च-एव विघ्न-ह-तस्य न जायते॥3॥
वक्रतुण्ड महाकाय कोटि-सूर्य-समप्रभ।
निर-विघ्नम् कुरु मे देव सर्व-कार्येषु सर्वदा॥4॥
संकल्प :
( दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले :)
' ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ---*--- नगरे ---**--- ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम् तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम् शुभ पुण्य तिथौ -- +-- गौत्रः --++-- अमुक शर्मा, वर्मा, गुप्ता, दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन् महागणपति प्रीत्यर्थम् यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।''
इसके पश्चात् हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।
नोट : ---*--- यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें ---**--- यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें ---+--- यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें ---++--- यहाँ पर अपना नाम बोलकर शर्मा/ वर्मा/ गुप्ता आदि बोलें
गणपति पूजन प्रारंभ
आवाहन
नागास्यम् नागहारम् त्वाम् गणराजम् चतुर्भुजम्।
भूषितम् स्व-आयुधै-है पाश-अंकुश परश्वधैहै॥
आवाह-यामि पूजार्थम् रक्षार्थम् च मम क्रतोहो।
इह आगत्व गृहाण त्वम् पूजा यागम् च रक्ष मे॥
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धिसहिताय गण-पतये नमह,
गणपतिम्-आवाह-यामि स्थाप-यामि।
( गंधाक्षत अर्पित करें।)
प्रतिष्ठाप न
आवाहन के पश्चात देवता का प्रतिष्ठापन करें-
अस्यै प्राणाहा प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाह क्षरन्तु च।
अस्यै देव-त्वम्-अर्चायै माम-हेति च कश्चन॥
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहित-गणपते सु-प्रतिष्ठितो वरदो भव।
आसन अर्प ण
इसके बाद निम्नलिखित मंत्र पढ़कर पुष्प अर्पित करें-
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, आसनम् समर्पयामि।
पाद्य, अर्ध्य, आचमनीय, स्नानीय, पुर-आचमनीय-अर्पण :-
मंत्र :- ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, एतानि पाद्य,ऽर्ध्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनर-आचमनीययानि समर्पयामि ।'
( उक्त मंत्र बोलकर जल छोड़ दें)
पञ्चामृत स्नान
( पश्चात् नीचे लिखे मंत्र को पढ़कर पंचामृत से गणपति देव को स्नान कराएँ)-
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, पंचामृत-स्नानम् समर्पयामि।
पंचामृत-स्नान-अन्ते शुद्ध-उदक-स्नानम् समर्पयामि।
शुद्धोदक स्नान
पश्चात् शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्, शुद्ध-उदक स्नानम् समर्पयामि।
वस्त्र-उपवस्त्र समर्पण
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्, वस्त्रम्-उपवस्त्र समर्पयामि।
यज्ञोपवित समर्पण
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, यज्ञो-पवीतम् समर्पयामि।
गन्ध व अक्ष त
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्, गन्धम् समर्पयामि।
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्पमाला एवं पुष् प
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, पुष्पमालाम् समर्पयामि।
दूर्वांकु र
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, दूर्वांकुरान् समर्पयामि ॥
सुगंधित धूप
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, धूपम् आघ्रापयामि ।
दीप-दर्श न
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, दीपं दर्शयामि । (हाथ धोलें)
नैवेद्य-निवेद न
विभिन्न नैवेद्य में मोदक, ऋतु के अनुकूल उपलब्ध फल अर्पित करें। नैवेद्य वस्तु का पहले शुद्ध जल से प्रोक्षण करें। धेनु-मुद्रा दिखाकर देवता के सम्मुख स्थापित करें। निम्नांकित मंत्र बोलें :-
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च ।
आहारम् भक्ष्य-भोज्यम् च नैवेद्यम् प्रति-गृह्यताम् ॥
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, नैवेद्यम् मोदक-मयम् ऋतुफलानि च समर्पयामि ।
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, आचमनीयम् मध्ये पानीयम् उत्तरा-पोशनम् च समर्पयामि ।
अखंड फल (नारियल)-दक्षिणा अर्पण
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, दक्षिणा व नारिकेल-फलम् समर्पयामि।
नीराजन (आरती)
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है।
कर्पूर नीराजन आपको समर्पित है।
( हाथ जोड़कर प्रणाम करें, आरती लेने के पश्चात हाथ अवश्य धोएँ)
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्, कर्पूर-नीराजनम् समर्पयामि॥
पुष्पाञ्जलि समर्प ण
ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्, मन्त्र-पुष्प-अंजलि समर्पयामि।
प्रदक्षिणा व क्षमाप्रार्थन ा
यानि कानि च पापानि ज्ञात-अज्ञात-कृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिण-पदे पदे॥
आवाहनम् न जानामि न जानामि तवार्चनाम् ।
यत्-पूजितम् मया देव परि-पूर्णम् तदस्तु मे ॥
अपराध सहस्त्राणि-क्रियंते अहर्नीशं मया ।
तत्सर्वम् क्षम्यताम् देव प्रसीद परमेश्वर ॥
पूजाकर्म समर्प ण
अनया पूजया सिद्धि बुद्धि सहिता । महागणपति प्रियताम् न मम् ॥
ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु । ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ऊँ आनंद ।।

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