सर्व कार्य हेतु सिद्ध मंत्र

सर्व-कार्य-सिद्धि जञ्जीरा मन्त्र

“या उस्ताद बैठो पास, काम आवै रास। ला इलाही लिल्ला हजरत वीर कौशल्या वीर, आज मज रे जालिम शुभ करम दिन करै जञ्जीर। जञ्जीर से कौन-कौन चले? बावन वीर चलें, छप्पन कलवा चलें। चौंसठ योगिनी चलें, नब्बे नारसिंह चलें। देव चलें, दानव चलें। पाँचों त्रिशेम चलें, लांगुरिया सलार चलें। भीम की गदा चले, हनुमान की हाँक चले। नाहर की धाक चलै, नहीं चलै, तो हजरत सुलेमान के तखत की दुहाई है। एक लाख अस्सी हजार पीर व पैगम्बरों की दुहाई है। चलो मन्त्र, ईश्वर वाचा। गुरु का शब्द साँचा।”
विधि- उक्त मन्त्र का जप शुक्ल-पक्ष के सोमवार या मङ्गलवार से प्रारम्भ करे। कम-से-कम ५ बार नित्य करे। अथवा २१, ४१ या १०८ बार नित्य जप करे। ऐसा ४० दिन तक करे। ४० दिन के अनुष्ठान में मांस-मछली का प्रयोग न करे। जब ‘ग्रहण’ आए, तब मन्त्र का जप करे।
यह मन्त्र सभी कार्यों में काम आता है। भूत-प्रेत-बाधा हो अथवा शारीरिक-मानसिक कष्ट हो, तो उक्त मन्त्र ३ बार पढ़कर रोगी को पिलाए। मुकदमे में, यात्रा में-सभी कार्यों में इसके द्वारा सफलता मिलती है।
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अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र

प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- ‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।
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आकर्षण-मन्त्र(Attraction-mantra)
सर्व-जन-आकर्षण-मन्त्र
१॰ “ॐ नमो आदि-रुपाय अमुकस्य आकर्षणं कुरु कुरु स्वाहा।”
विधि- १ लाख जप से उक्त मन्त्र सिद्ध होता है। ‘अमुकस्य’ के स्थान पर साध्य या साध्या का नाम जोड़े। “आकर्षण’” का अर्थ विशाल दृष्टि से लिया जाना चाहिए। सूझ-बूझ से उक्त मन्त्र का उपयोग करना चाहिए। मान्त्र-सिद्धि के बाद प्रयोग करना चाहिए। प्रयोग के समय अनामिका उँगली के रक्त से भोज-पत्र के ऊपर पूरा मन्त्र लिखना चाहिए। जिसका आकर्षण करना हो, उस व्यक्ति का नाम मन्त्र में जोड़ कर लिखें। फिर उस भोज-पत्र को शहद में डाले। बाद में भी मन्त्र का जप करते रहना चाहिए। कुछ ही दिनों में साध्य वशीभूत होगा।
२॰ “ॐ हुँ ॐ हुँ ह्रीं।”
३॰ “ॐ ह्रों ह्रीं ह्रां नमः।”
४॰ “ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं इँ नमः।”
विधि- उक्त मन्त्र में से किसी भी एक मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन १० हजार जप करने से १५ दिनों में साधक की आकर्षण-शक्ति बढ़ जाती है। ‘जप’ के साध्य का ध्यान करना चाहिए।
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शत्रु-नाशक प्रयोग-श्रीकृष्ण कीलक
श्रीकृष्ण कीलक
ॐ गोपिका-वृन्द-मध्यस्थं, रास-क्रीडा-स-मण्डलम्।
क्लम प्रसति केशालिं, भजेऽम्बुज-रूचि हरिम्।।
विद्रावय महा-शत्रून्, जल-स्थल-गतान् प्रभो !
ममाभीष्ट-वरं देहि, श्रीमत्-कमल-लोचन !।।
भवाम्बुधेः पाहि पाहि, प्राण-नाथ, कृपा-कर !
हर त्वं सर्व-पापानि, वांछा-कल्प-तरोर्मम।।
जले रक्ष स्थले रक्ष, रक्ष मां भव-सागरात्।
कूष्माण्डान् भूत-गणान्, चूर्णय त्वं महा-भयम्।।
शंख-स्वनेन शत्रूणां, हृदयानि विकम्पय।
देहि देहि महा-भूति, सर्व-सम्पत्-करं परम्।।
वंशी-मोहन-मायेश, गोपी-चित्त-प्रसादक !
ज्वरं दाहं मनो दाहं, बन्ध बन्धनजं भयम्।।
निष्पीडय सद्यः सदा, गदा-धर गदाऽग्रजः !
इति श्रीगोपिका-कान्तं, कीलकं परि-कीर्तितम्।
यः पठेत् निशि वा पंच, मनोऽभिलषितं भवेत्।
सकृत् वा पंचवारं वा, यः पठेत् तु चतुष्पथे।।
शत्रवः तस्य विच्छिनाः, स्थान-भ्रष्टा पलायिनः।
दरिद्रा भिक्षुरूपेण, क्लिश्यन्ते नात्र संशयः।।
ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा।।
विशेष – एक बार माता पार्वती कृष्ण बनी तथा श्री शिवजी माँ राधा बने। उन्हीं पार्वती रूप कृष्ण की उपासना हेतु उक्त ‘कृष्ण-कीलक’ की रचना हुई।
यदि रात्रि में घर पर इसके 5 पाठ करें, तो मनोकामना पूरी होगी। दुष्ट लोग यदि दुःख देते हों, तो सूर्यास्त के बाद चैराहे पर एक या पाँच पाठ करे, तो शत्रु विच्छिन होकर दरिद्रता एवं व्याधि से पीड़ित होकर भाग जायेगें।
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कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र

“ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।”
विधि-
सामग्रीः- धूप या गुग्गुल, दीपक, घी, सिन्दूर, बेसन का लड्डू। दिनः- बुधवार, गुरुवार या शनिवार। निर्दिष्ट वारों में यदि ग्रहण, पर्व, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ-सिद्धि योग हो तो उत्तम। समयः- रात्रि १० बजे। जप संख्या-१२५। अवधिः- ४० दिन।
किसी एकान्त स्थान में या देवालय में, जहाँ लोगों का आवागमन कम हो, भगवान् गणेश की षोडशोपचार से पूजा करे। घी का दीपक जलाकर, अपने सामने, एक फुट की ऊँचाई पर रखे। सिन्दूर और लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और प्रतिदिन १२५ बार उक्त मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन के प्रसाद को बच्चों में बाँट दे। चालीसवें दिन सवा सेर लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और मन्त्र का जप समाप्त होने पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ द्रव्य-दक्षिणा में दे। सिन्दूर को एक डिब्बी में सुरक्षित रखे। एक सप्ताह तक इस सिन्दूर को न छूए। उसके बाद जब कभी कोई कार्य या समस्या आ पड़े, तो सिन्दूर को सात बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर अपने माथे पर टीका लगाए। कार्य सफल होगा।
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श्री गणेश मन्त्र
देपालसर (चूरु) गणेशजी

“ॐ नमो सिद्ध-विनायकाय सर्व-कार्य-कर्त्रे सर्व-विघ्न-प्रशमनाय सर्व-राज्य-वश्य-करणाय सर्व-जन-सर्व-स्त्री-पुरुष-आकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा।”
विधि- नित्य-कर्म से निवृत्त होकर उक्त मन्त्र का निश्चित संख्या में नित्य १ से १० माला ‘जप’ करे। बाद में जब घर से निकले, तब अपने अभीष्ट कार्य का चिन्तन करे। इससे अभीष्ट कार्व सुगमता से पूरे हो जाते हैं।
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सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्र

श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी।
मोक्ष-मुक्ति-प्रदायिनी, सद्-बुद्धि-शक्ति-दात्रिणी।।१
सन्तति-सम्वृद्धि-दायिनी, शुभ-शिष्य-वृन्द-प्रदायिनी।
नव-रत्ना नारायणी, भगवती भद्र-कारिणी।।२
धर्म-न्याय-नीतिदा, विद्या-कला-कौशल्यदा।
प्रेम-भक्ति-वर-सेवा-प्रदा, राज-द्वार-यश-विजयदा।।३
धन-द्रव्य-अन्न-वस्त्रदा, प्रकृति पद्मा कीर्तिदा।
सुख-भोग-वैभव-शान्तिदा, साहित्य-सौरभ-दायिका।।४
वंश-वेलि-वृद्धिका, कुल-कुटुम्ब-पौरुष-प्रचारिका।
स्व-ज्ञाति-प्रतिष्ठा-प्रसारिका, स्व-जाति-प्रसिद्धि-प्राप्तिका।।५
भव्य-भाग्योदय-कारिका, रम्य-देशोदय-उद्भाषिका।
सर्व-कार्य-सिद्धि-कारिका, भूत-प्रेत-बाधा-नाशिका।
अनाथ-अधमोद्धारिका, पतित-पावन-कारिका।
मन-वाञ्छित॒फल-दायिका, सर्व-नर-नारी-मोहनेच्छा-पूर्णिका।।७
साधन-ज्ञान-संरक्षिका, मुमुक्षु-भाव-समर्थिका।
जिज्ञासु-जन-ज्योतिर्धरा, सुपात्र-मान-सम्वर्द्धिका।।८
अक्षर-ज्ञान-सङ्गतिका, स्वात्म-ज्ञान-सन्तुष्टिका।
पुरुषार्थ-प्रताप-अर्पिता, पराक्रम-प्रभाव-समर्पिता।।९
स्वावलम्बन-वृत्ति-वृद्धिका, स्वाश्रय-प्रवृत्ति-पुष्टिका।
प्रति-स्पर्द्धी-शत्रु-नाशिका, सर्व-ऐक्य-मार्ग-प्रकाशिका।।१०
जाज्वल्य-जीवन-ज्योतिदा, षड्-रिपु-दल-संहारिका।
भव-सिन्धु-भय-विदारिका, संसार-नाव-सुकानिका।।११
चौर-नाम-स्थान-दर्शिका, रोग-औषधी-प्रदर्शिका।
इच्छित-वस्तु-प्राप्तिका, उर-अभिलाषा-पूर्णिका।।१२
श्री देवी मङ्गला, गुरु-देव-शाप-निर्मूलिका।
आद्य-शक्ति इन्दिरा, ऋद्धि-सिद्धिदा रमा।।१३
सिन्धु-सुता विष्णु-प्रिया, पूर्व-जन्म-पाप-विमोचना।
दुःख-सैन्य-विघ्न-विमोचना, नव-ग्रह-दोष-निवारणा।।१४
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवता-स्वरुपिणी श्रीमहा-माया महा-देवी महा-शक्ति महालक्ष्म्ये नमो नमः।
ॐ ह्रीं श्रीपर-ब्रह्म परमेश्वरी। भाग्य-विधाता भाग्योदय-कर्त्ता भाग्य-लेखा भगवती भाग्येश्वरी ॐ ह्रीं।
कुतूहल-दर्शक, पूर्व-जन्म-दर्शक, भूत-वर्तमान-भविष्य-दर्शक, पुनर्जन्म-दर्शक, त्रिकाल-ज्ञान-प्रदर्शक, दैवी-ज्योतिष-महा-विद्या-भाषिणी त्रिपुरेश्वरी। अद्भुत, अपुर्व, अलौकिक, अनुपम, अद्वितीय, सामुद्रिक-विज्ञान-रहस्य-रागिनी, श्री-सिद्धि-दायिनी। सर्वोपरि सर्व-कौतुकानि दर्शय-दर्शय, हृदयेच्छित सर्व-इच्छा पूरय-पूरय ॐ स्वाहा।
ॐ नमो नारायणी नव-दुर्गेश्वरी। कमला, कमल-शायिनी, कर्ण-स्वर-दायिनी, कर्णेश्वरी, अगम्य-अदृश्य-अगोचर-अकल्प्य-अमोघ-अधारे, सत्य-वादिनी, आकर्षण-मुखी, अवनी-आकर्षिणी, मोहन-मुखी, महि-मोहिनी, वश्य-मुखी, विश्व-वशीकरणी, राज-मुखी, जग-जादूगरणी, सर्व-नर-नारी-मोहन-वश्य-कारिणी, मम करणे अवतर अवतर, नग्न-सत्य कथय-कथय।
अतीत अनाम वर्तनम्। मातृ मम नयने दर्शन। ॐ नमो श्रीकर्णेश्वरी देवी सुरा शक्ति-दायिनी। मम सर्वेप्सित-सर्व-कार्य-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ॐ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया महा-शक्ति महा-लक्ष्मी महा-देव्यै विच्चे-विच्चे श्रीमहा-देवी महा-लक्ष्मी महा-माया महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।
ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः। ॐ श्री ऐरावत-हस्ति-वाहिन्यै नमः। ॐ श्री कल्प-वृक्ष-फल-भक्षिण्यै नमः। ॐ श्री काम-दुर्गा पयः-पान-कारिण्यै नमः। ॐ श्री नन्दन-वन-विलासिन्यै नमः। ॐ श्री सुर-गंगा-जल-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री मन्दार-सुमन-हार-शोभिन्यै नमः। ॐ श्री देवराज-हंस-लालिन्यै नमः। ॐ श्री अष्ट-दल-कमल-यन्त्र-रुपिण्यै नमः। ॐ श्री वसन्त-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री सुमन-सरोज-निवासिन्यै नमः। ॐ श्री कुसुम-कुञ्ज-भोगिन्यै नमः। ॐ श्री पुष्प-पुञ्ज-वासिन्यै नमः। ॐ श्री रति-रुप-गर्व-गञ्हनायै नमः। ॐ श्री त्रिलोक-पालिन्यै नमः। ॐ श्री स्वर्ग-मृत्यु-पाताल-भूमि-राज-कर्त्र्यै नमः।
श्री लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीदेवी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री रसेश्वरी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री ऋद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री सिद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कीर्तिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रीतिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीइन्दिरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कमला-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहिरण्य-वर्णा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरत्न-गर्भा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुवर्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुप्रभा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपङ्कनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीराधिका-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्म-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरमा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलज्जा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीजया-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसरोजिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहस्तिवाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीगरुड़-वाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसिंहासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकमलासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतुष्टिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवृद्धिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपालिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरक्षिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवैष्णवी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीमानवेष्टाभ्यो नमः। श्रीसुरेष्टाभ्यो नमः। श्रीकुबेराष्टाभ्यो नमः। श्रीत्रिलोकीष्टाभ्यो नमः। श्रीमोक्ष-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीभुक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकल्याण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीनवार्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीअक्षस्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुर-स्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रज्ञावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्मावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशंख-चक्र-गदा-पद्म-धरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीमहा-लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलक्ष्मी-नारायण-यन्त्रेभ्यो नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीमहा-माया-महा-देवी-महा-शक्ति-महा-लक्ष्मी-स्वरुपा-श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः।
ॐ विष्णु-पत्नीं, क्षमा-देवीं, माध्वीं च माधव-प्रिया। लक्ष्मी-प्रिय-सखीं देवीं, नमाम्यच्युत-वल्लभाम्। ॐ महा-लक्ष्मी च विद्महे विष्णु-पत्नि च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्। मम सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा।
विधिः-
१॰ उक्त सर्व-कामना-सिद्धी स्तोत्र का नित्य पाठ करने से सभी प्रकार की कामनाएँ पूर्ण होती है।
२॰ इस स्तोत्र से ‘यन्त्र-पूजा’ भी होती हैः-
‘सर्वतोभद्र-यन्त्र’ तथा ‘सर्वारिष्ट-निवारक-यन्त्र’ में से किसी भी यन्त्र पर हो सकती है। ‘श्रीहिरण्यमयी’ से लेकर ‘नव-ग्रह-दोष-निवारण’- १४ श्लोक से इष्ट का आवाहन और स्तुति है। बाद में “ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं” सर्व कामना से पुष्प समर्पित कर धऽयान करे और यह भावना रखे कि- ‘मम सर्वेप्सितं सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।’
फिर अनुलोम-विलोम क्रम से मन्त्र का जप करे-”ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया-महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।”
स्वेच्छानुसार जप करे। बाद में “ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः” आदि १६ मन्त्रों से यन्त्र में, यदि षोडश-पत्र हो, तो उनके ऊपर, अन्यथा यन्त्र में पूर्वादि-क्रम से पुष्पाञ्जलि प्रदान करे। तदनन्तर ‘श्रीलक्ष्मी-तम्त्रेभ्यो नमः’ और ‘श्री सर्व-कामना-सिद्धि-महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः’ से अष्टगन्ध या जो सामग्री मिले, उससे ‘यन्त्र’ में पूजा करे। अन्त में ‘लक्ष्मी-गायत्री’ पढ़करपुष्पाजलि देकर विसर्जन करे।
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नवनाथ-शाबर-मन्त्र

“ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।”
विधिः- पूर्णमासी से जप प्रारम्भ करे। जप के पूर्व चावल की नौ ढेरियाँ बनाकर उन पर ९ सुपारियाँ मौली बाँधकर नवनाथों के प्रतीक-रुप में रखकर उनका षोडशोपचार-पूजन करे। तब गुरु, गणेश और इष्ट का स्मरण कर आह्वान करे। फिर मन्त्र-जप करे। प्रतिदिन नियत समय और निश्चित संख्या में जप करे। ब्रह्मचर्य से रहे, अन्य के हाथों का भोजन या अन्य खाद्य-वस्तुएँ ग्रहण न करे। स्वपाकी रहे। इस साधना से नवनाथों की कृपा से साधक धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उनकी कृपा से ऐहिक और पारलौकिक-सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
विशेषः-’शाबर-पद्धति’ से इस मन्त्र को यदि ‘उज्जैन’ की ‘भर्तृहरि-गुफा’ में बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संख्या में जप लें, तो परम-सिद्धि मिलती है और नौ-नाथ प्रत्यक्ष दर्शन देकर अभीष्ट वरदान देते हैं।
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नवनाथ-स्तुति
“आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन की राखै। कन्थडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के नाम सुमिरिए, तनिक भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना, नव-नाथों का नाम। सेवक सुमरे चन्द्र-नाथ, पूर्ण होंय सब काम।।”
विधिः- प्रतिदिन नव-नाथों का पूजन कर उक्त स्तुति का २१ बार पाठ कर मस्तक पर भस्म लगाए। इससे नवनाथों की कृपा मिलती है। साथ ही सब प्रकार के भय-पीड़ा, रोग-दोष, भूत-प्रेत-बाधा दूर होकर मनोकामना, सुख-सम्पत्ति आदि अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं। २१ दिनों तक, २१ बार पाठ करने से सिद्धि होती है।
नव-नाथ-स्मरण

“आदि-नाथ ओ स्वरुप, उदय-नाथ उमा-महि-रुप। जल-रुपी ब्रह्मा सत-नाथ, रवि-रुप विष्णु सन्तोष-नाथ। हस्ती-रुप गनेश भतीजै, ताकु कन्थड-नाथ कही जै। माया-रुपी मछिन्दर-नाथ, चन्द-रुप चौरङ्गी-नाथ। शेष-रुप अचम्भे-नाथ, वायु-रुपी गुरु गोरख-नाथ। घट-घट-व्यापक घट का राव, अमी महा-रस स्त्रवती खाव। ॐ नमो नव-नाथ-गण, चौरासी गोमेश। आदि-नाथ आदि-पुरुष, शिव गोरख आदेश। ॐ श्री नव-नाथाय नमः।।”
विधिः- उक्त स्मरण का पाठ प्रतिदिन करे। इससे पापों का क्षय होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुख-सम्पत्ति-वैभव से साधक परिपूर्ण हो जाता है। २१ दिनों तक २१ पाठ करने से इसकी सिद्धि होती है।
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आय बढ़ाने का मन्त्र

प्रार्थना-विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रगट हुई कामाक्षा भगवती। आदि-शक्ति युगल-मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर जाने संसार। दोहाई कामाक्षा की, दोहाई दोहाई। आय बढ़ा, व्यय घटा, दया कर माई।
मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः शिव-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै, ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- किसी दिन प्रातः स्नान कर उक्त मन्त्र का १०८ बार जप कर ११ बार गाय के घी से हवन करे। नित्य ७ बार जप करे। इससे शीघ्र ही आय में वृद्धि होगी।
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शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वालत्-पावक ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यासः- शिरसि ज्वालत्-पावक-ऋषये नमः। मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः, हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः, सर्वाङ्गे मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगाय नमः।।
कर-न्यासः- ॐ ह्रां क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ह्रूं क्लूं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ ह्रैं क्लैं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रौं क्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रः क्लः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि-न्यासः- ॐ ह्रां क्लां हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा। ॐ ह्रूं क्लूं शिखायै वषट्। ॐ ह्रैं क्लैं कवचाय हुम्। ॐ ह्रौं क्लौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ ह्रः क्लः अस्त्राय फट्।
ध्यानः-
रक्तागीं शव-वाहिनीं त्रि-शिरसीं रौद्रां महा-भैरवीम्,
धूम्राक्षीं भय-नाशिनीं घन-निभां नीलालकाऽलंकृताम्।
खड्ग-शूल-धरीं महा-भय-रिपुध्वंशीं कृशांगीं महा-
दीर्घागीं त्रि-जटीं महाऽनिल-निभां ध्यायेत् पिनाकीं शिवाम्।।
मन्त्रः- “ॐ ह्रीं क्लीं पुण्य-वती-महा-माये सर्व-दुष्ट-वैरि-कुलं निर्दलय क्रोध-मुखि, महा-भयास्मि, स्तम्भं कुरु विक्रौं स्वाहा।।” (३००० जप)
मूल स्तोत्रः-
खड्ग-शूल-धरां अम्बां, महा-विध्वंसिनीं रिपून्।
कृशांगींच महा-दीर्घां, त्रिशिरां महोरगाम्।।
स्तम्भनं कुरु कल्याणि, रिपु विक्रोशितं कुरु।
ॐ स्वामि-वश्यकरी देवी, प्रीति-वृद्धिकरी मम।।
शत्रु-विध्वंसिनी देवी, त्रिशिरा रक्त-लोचनी।
अग्नि-ज्वाला रक्त-मुखी, घोर-दंष्ट्री त्रिशूलिनी।।
दिगम्बरी रक्त-केशी, रक्त पाणि महोदरी।
यो नरो निष्कृतं घोरं, शीघ्रमुच्चाटयेद् रिपुम्।।
।।फल-श्रुति।।
इमं स्तवं जपेन्नित्यं, विजयं शत्रु-नाशनम्।
सहस्त्र-त्रिशतं कुर्यात्। कार्य-सिद्धिर्न संशयः।।
जपाद् दशांशं होमं तु, कार्यं सर्षप-तण्डुलैः।
पञ्च-खाद्यै घृतं चैव, नात्र कार्या विचारणा।।
।।श्रीशिवार्णवे शिव-गौरी-सम्वादे विभीषणस्य रघुनाथ-प्रोक्तं शत्रु-विध्वंसनी-स्तोत्रम्।।
विशेषः-
यह स्तोत्र अत्यन्त उग्र है। इसके विषय में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए-
(क)
(ख) प्रथम और अन्तिम आवृति में नामों के साथ फल-श्रुति मात्र पढ़ें। पाठ नहीं होगा।
(ग) घर में पाठ कदापि न किया जाए, केवल शिवालय, नदी-तट, एकान्त, निर्जन-वन, श्मशान अथवा किसी मन्दिर के एकान्त में ही करें।
(घ) पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं है। सीधे ‘प्रयोग’ करें। प्रत्येक ‘प्रयोग’ में तीन हजार आवृत्तियाँ करनी होगी।
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देवाकर्षण मन्त्र

“ॐ नमो रुद्राय नमः। अनाथाय बल-वीर्य-पराक्रम प्रभव कपट-कपाट-कीट मार-मार हन-हन पथ स्वाहा।”
विधिः- कभी-कभी ऐसा होता है कि पूजा-पाठ, भक्ति-योग से देवी-देवता साधक से सन्तुष्ट नहीं होते अथवा साधक बहुत कुछ करने पर भी अपेक्षित सुख-शान्ति नहीं पाता। इसके लिए यह ‘प्रयोग’ सिद्धि-दायक है।
उक्त मन्त्र का ४१ दिनों में एक या सवा लाख जप ‘विधिवत’ करें। मन्त्र को भोज-पत्र या कागज पर लिख कर पूजन-स्थान में स्थापित करें। सुगन्धित धूप, शुद्ध घृत के दीप और नैवेद्य से देवता को प्रसन्न करने का संकल्प करे। यम-नियम से रहे। ४१ दिन में मन्त्र चैतन्य हो जायेगा। बाद में मन्त्र का स्मरण कर कार्य करें। प्रारब्ध की हताशा को छोड़कर, पुरुषार्थ करें और देवता उचित सहायता करेगें ही, ऐसा संकल्प बनाए रखें।
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सर्व-संकटहारी-प्रयोग

“सर्वा बाधासु, वेदनाभ्यर्दितोऽपि।
स्मरन् ममैच्चरितं, नरो मुच्यते संकटात्।।
ॐ नमः शिवाय।”
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विविध कार्य-साधक अम्बिका मन्त्र
विविध कार्य-साधक अम्बिका मन्त्र
ॐ आठ-भुजी अम्बिका, एक नाम ओंकार।
खट्-दर्शन त्रिभुवन में, पाँच पण्डवा सात दीप।
चार खूँट नौ खण्ड में, चन्दा सूरज दो प्रमाण।
हाथ जोड़ विनती करूँ, मम करो कल्याण।।
नित्य 108 जप करके जो भी प्रार्थना की जायेगी, पूरी होगी। सिद्ध मन्त्र है, अलग से सिद्ध करना आवश्यक नहीं है। नित्य कुछ जप पर्याप्त है।
8 1 6
3 5 7
4 9 2
कुछ प्रयोग निम्नलिखित है -
चुटकी में राख लेकर 3 बार अभिमन्त्रित करके मारने से लगी आग बुझ जायेगी, भूत-प्रेतादि दूर होंगे, बुखार उतर जायेगा, नजर आदि दूर होगी।
शत्रुनाषार्थ- 1 नारियल, 2 नींबू, एक पाव गुड़, 1 पैसा भर सिंदूर, अगरबत्ती और नींबू बंध सके, इतना लाल कपड़ा। शनिवार को रात में कण्डे की आग जलाकर पूर्वाभिमुख बैठकर कण्डे की राख 1 चुटकी लेकर उस पर 1 बार मन्त्र पढकर शत्रु की दिशा में फेंके, ऐसा तीन बार करें। फिर कहे कि ‘‘मेरे अमुक शत्रु का नाश करो’’ और 1 नींबू काटकर आग पर निचोड़ें। फिर शेष बचा नींबू और सिन्दूर कपड़े में लपेट कर रात भर अपने सिरहाने रखे और सवेरे पहर 3-4 बजे उसे शत्रु के घर में फेंक दे या किसी से फिंकवा दें। नारियल, अगरबत्ती और गुड़ किसी देवी मन्दिर में चढ़ा दें। प्रसाद स्वयं न खाए। शत्रु का नाश होगा।
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दुर्गा शाबर मन्त्र
“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह वाहिनीं बीस हस्ती भगवती, रत्न मण्डित सोनन की माल। उत्तर पथ में आन बैठी, हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि। धन-धान्य देहि देहि, कुरू कुरू स्वाहा।”
उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर आवश्यकतानुसार श्रद्धा से एक माला जप करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त होती है। नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में वृद्धि होती है।
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श्रीहनुमत्-मन्त्र-चमत्कार-अनुष्ठान
(प्रस्तुत विधान के प्रत्येक मन्त्र के ११००० ‘जप‘ एवं दशांश ‘हवन’ से सिद्धि होती है। हनुमान जी के मन्दिर में, ‘रुद्राक्ष’ की माला से, ब्रह्मचर्य-पूर्वक ‘जप करें। नमक न खाए तो उत्तम है। कठिन-से-कठिन कार्य इन मन्त्रों की सिद्धि से सुचारु रुप से होते हैं।)
१॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वायु-सुताय, अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, अखण्ड-ब्रह्मचर्य-व्रत-पालन-तत्पराय, धवली-कृत-जगत्-त्रितयाय, ज्वलदग्नि-सूर्य-कोटि-समप्रभाय, प्रकट-पराक्रमाय, आक्रान्त-दिग्-मण्डलाय, यशोवितानाय, यशोऽलंकृताय, शोभिताननाय, महा-सामर्थ्याय, महा-तेज-पुञ्जः-विराजमानाय, श्रीराम-भक्ति-तत्पराय, श्रीराम-लक्ष्मणानन्द-कारणाय, कवि-सैन्य-प्राकाराय, सुग्रीव-सख्य-कारणाय, सुग्रीव-साहाय्य-कारणाय, ब्रह्मास्त्र-ब्रह्म-शक्ति-ग्रसनाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-निवारणाय, शल्य-विशल्यौषधि-समानयनाय, बालोदित-भानु-मण्डल-ग्रसनाय, अक्षकुमार-छेदनाय, वन-रक्षाकर-समूह-विभञ्जनाय, द्रोण-पर्वतोत्पाटनाय, स्वामि-वचन-सम्पादितार्जुन, संयुग-संग्रामाय, गम्भीर-शब्दोदयाय, दक्षिणाशा-मार्तण्डाय, मेरु-पर्वत-पीठिकार्चनाय, दावानल-कालाग्नि-रुद्राय, समुद्र-लंघनाय, सीताऽऽश्वासनाय, सीता-रक्षकाय, राक्षसी-संघ-विदारणाय, अशोक-वन-विदारणाय, लंका-पुरी-दहनाय, दश-ग्रीव-शिरः-कृन्त्तकाय, कुम्भकर्णादि-वध-कारणाय, बालि-निर्वहण-कारणाय, मेघनाद-होम-विध्वंसनाय, इन्द्रजित-वध-कारणाय, सर्व-शास्त्र-पारंगताय, सर्व-ग्रह-विनाशकाय, सर्व-ज्वर-हराय, सर्व-भय-निवारणाय, सर्व-कष्ट-निवारणाय, सर्वापत्ति-निवारणाय, सर्व-दुष्टादि-निबर्हणाय, सर्व-शत्रुच्छेदनाय, भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-ध्वंसकाय, सर्व-कार्य-साधकाय, प्राणि-मात्र-रक्षकाय, राम-दूताय-स्वाहा।।
२॰ ॐ नमो हनुमते, रुद्रावताराय, विश्व-रुपाय, अमित-विक्रमाय, प्रकट-पराक्रमाय, महा-बलाय, सूर्य-कोटि-समप्रभाय, राम-दूताय-स्वाहा।।
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गणेश शाबर मन्त्र (पाठान्तर सहित)

“गणपत वीर भूखे मसान, जो फल माँगू सो फल देत, गणपत देखे, गजपत डरे, गणपत के छत्र से बादशाह डरे, मुख देखे राजा-प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर औलिया गौरी का पुत्र, गूगल खेये करुँगा ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गणपत लाये घनेरी, गिरनार पति ॐ नमो स्वाहा”
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काली-शाबर-मन्त्र

“काली काली महा-काली, इन्द्र की बेटी, ब्रह्मा की साली। पीती भर भर रक्त प्याली, उड़ बैठी पीपल की डाली। दोनों हाथ बजाए ताली। जहाँ जाए वज्र की ताली, वहाँ ना आए दुश्मन हाली। दुहाई कामरो कामाख्या नैना योगिनी की, ईश्वर महादेव गोरा पार्वती की, दुहाई वीर मसान की।।”
विधिः- प्रतिदिन १०८ बार ४० दिन तक जप कर सिद्ध करे। प्रयोग के समय पढ़कर तीन बार जोर से ताली बजाए। जहाँ तक ताली की आवाज जायेगी, दुश्मन का कोई वार या भूत, प्रेत असर नहीं करेगा।
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महा-लक्ष्मी मन्त्र

“राम-राम क्ता करे, चीनी मेरा नाम। सर्व-नगरी बस में करुँ, मोहूँ सारा गाँव।
राजा की बकरी करुँ, नगरी करुँ बिलाई। नीचा में ऊँचा करुँ, सिद्ध गोरखनाथ की दुहाई।।”
विधिः- जिस दिन गुरु-पुष्य योग हो, उस दिन से प्रतिदिन एकान्त में बैठ कर कमल-गट्टे की माला से उक्त मन्त्र को १०८ बार जपें। ४० दिनों में यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है, फिर नित्य ११ बार जप करते रहें।
शीघ्र धन प्राप्ति के लिए

“ॐ नमः कर घोर-रुपिणि स्वाहा”
विधिः उक्त मन्त्र का जप प्रातः ११ माला देवी के किसी सिद्ध स्थान या नित्य पूजन स्थान पर करे। रात्रि में १०८ मिट्टी के दाने लेकर किसी कुएँ पर तथा सिद्ध-स्थान या नित्य-पूजन-स्थान की तरफ मुख करके दायाँ पैर कुएँ में लटकाकर व बाँएँ पैर को दाएँ पैर पर रखकर बैठे। प्रति-जप के साथ एक-एक करके १०८ मिट्टी के दाने कुएँ में डाले। ग्तारह दिन तक इसी प्रकार करे। यह प्रयोग शीघ्र आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए है।
लक्ष्मी-पूजन मन्त्र

“आवो लक्ष्मी बैठो आँगन, रोरी तिलक चढ़ाऊँ। गले में हार पहनाऊँ।। बचनों की बाँधी, आवो हमारे पास। पहला वचन श्रीराम का, दूजा वचन ब्रह्मा का, तीजा वचन महादेव का। वचन चूके, तो नर्क पड़े। सकल पञ्च में पाठ करुँ। वरदान नहीं देवे, तो महादेव शक्ति की आन।।”
विधिः- दीपावली की रात्रि को सर्व-प्रथम षोडशोपचार से लक्ष्मी जी का पूजन करें। स्वयं न कर सके, तो किसी कर्म-काण्डी ब्राह्मण से करवा लें। इसके बाद रात्रि में ही उक्त मन्त्र की ५ माला जप करें। इससे वर्ष-समाप्ति तक धन की कमी नहीं होगी और सारा वर्ष सुख तथा उल्लास में बीतेगा।
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वशीकरण, सम्मोहन व आकर्षण हेतु “उर्वशी-यन्त्र” साधना

इस यन्त्र को चमेली की लकड़ी की कलम से, भोजपत्र पर कुंकुम या कस्तुरी की स्याही से निर्माण करे।इस यन्त्र की साधना पूर्णिमा की रात्री से करें। रात्री में स्नानादि से पवित्र होकर एकान्त कमरे में आम की लकड़ी के पट्टे पर सफेद वस्त्र बिछावें, स्वयं भी सफेद वस्त्र धारण करें, सफेद आसन पर ही यन्त्र निर्माण व पूजन करने हेतु बैठें। पट्टे पर यन्त्र रखकर धूप-दीपादि से पूजन करें। सफेद पुष्प चढ़ाये। फिर पाँच माला “ॐ सं सौन्दर्योत्तमायै नमः।” नित्य पाँच रात्रि करें। पांचवे दिन रात्री में एक माला देशी घी व सफेद चन्दन के चूरे से हवन करें। हवन में आम की लकड़ी व चमेली की लकड़ी का प्रयोग करें।
सिद्ध मोहन मन्त्र

क॰ “ॐ अं आं इं ईं उं ऊं हूँ फट्।”
विधिः- ताम्बूल को उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर साध्या को खिलाने से उसे खिलानेवाले के ऊपर मोह उत्पन्न होता है।
ख॰ “ॐ नमो भगवती पाद-पङ्कज परागेभ्यः।”
ग॰ “ॐ भीं क्षां भीं मोहय मोहय।”
विधिः- किसी पर्व काल में १२५ माला अथवा १२,५०० बार मन्त्र का जप कर सिद्ध कर लेना चाहिए। बाद में प्रयोग के समय किसी भी एक मन्त्र को तीन बार जप करने से आस-पास के व्यक्ति मोहित होते हैं
मोहन
३॰ दृष्टि द्वारा मोहन करने का मन्त्र
“ॐ नमो भगवति, पुर-पुर वेशनि, सर्व-जगत-भयंकरि ह्रीं ह्रैं, ॐ रां रां रां क्लीं वालौ सः चव काम-बाण, सर्व-श्री समस्त नर-नारीणां मम वश्यं आनय आनय स्वाहा।”
विधिः- किसी भी सिद्ध योग में उक्त मन्त्र का १०००० जप करे। बाद में साधक अपने मुहँ पर हाथ फेरते हुए उक्त मन्त्र को १५ बार जपे। इससे साधक को सभी लोग मान-सम्मान से देखेंगे।
४॰ तेल अथवा इत्र से मोहन
क॰ “ॐ मोहना रानी-मोहना रानी चली सैर को, सिर पर धर तेल की दोहनी। जल मोहूँ थल मोहूँ, मोहूँ सब संसार। मोहना रानी पलँग चढ़ बैठी, मोह रहा दरबार। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। दुहाई गौरा-पार्वती की, दुहाई बजरंग बली की।
ख॰ “ॐ नमो मोहना रानी पलँग चढ़ बैठी, मोह रहा दरबार। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। दुहाई लोना चमारी की, दुहाई गौरा-पार्वती की। दुहाई बजरंग बली की।”
विधिः- ‘दीपावली’ की रात में स्नानादिक कर पहले से स्वच्छ कमरे में ‘दीपक’ जलाए। सुगन्धबाला तेल या इत्र तैयार रखे। लोबान की धूनी दे। दीपक के पास पुष्प, मिठाई, इत्र इत्यादि रखकर दोनों में से किसी भी एक मन्त्र का २२ माला ‘जप’ करे। फिर लोबान की ७ आहुतियाँ मन्त्रोचार-सहित दे। इस प्रकार मन्त्र सिद्ध होगा तथा तेल या इत्र प्रभावशाली बन जाएगा। बाद में जब आवश्यकता हो, तब तेल या इत्र को ७ बार उक्त मन्त्र से अभीमन्त्रित कर स्वयं लगाए। ऐसा कर साधक जहाँ भी जाता है, वहाँ लोग उससे मोहित होते हैं। साधक को सूझ-बूझ से व्यवहार करना चाहिए। मन चाहे कार्य अवश्य पूरे होंगे।

श्री कामदेव का मन्त्र
(मोहन करने का अमोघ शस्त्र)
“ॐ नमो भगवते काम-देवाय श्रीं सर्व-जन-प्रियाय सर्व-जन-सम्मोहनाय ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल, हन-हन, वद-वद, तप-तप, सम्मोहय-सम्मोहय, सर्व-जनं मे वशं कुरु-कुरु स्वाहा।”
विधीः- उक्त मन्त्र का २१,००० जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है। तद्दशांश हवन-तर्पण-मार्जन-ब्रह्मभोज करे। बाद में नित्य कम-से-कम एक माला जप करे। इससे मन्त्र में चैतन्यता होगी और शुभ परिणाम मिलेंगे।
प्रयोग हेतु फल, फूल, पान कोई भी खाने-पीने की चीज उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर साध्य को दे।
उक्त मन्त्र द्वारा साधक का बैरी भी मोहित होता है। यदि साधक शत्रु को लक्ष्य में रखकर नित्य ७ दिनों तक ३००० बार जप करे, तो उसका मोहन अवश्य होता है।
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श्री भैरव मन्त्र

“ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश, काना मदरा, भगवाँ भेस। मार-मार काली-पुत्र। बारह कोस की मार, भूताँ हात कलेजी खूँहा गेडिया। जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ। बारह कोस की रिद्धि ल्यावो। चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो। सूती होय, तो जगाय ल्यावो। बैठा होय, तो उठाय ल्यावो। अनन्त केसर की भारी ल्यावो। गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो। गेल्याँ की रस्तान मोह, कुवे की पणिहारी मोह, बैठा बाणिया मोह, घर बैठी बणियानी मोह, राजा की रजवाड़ मोह, महिला बैठी रानी मोह। डाकिनी को, शाकिनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धक्का कूँ, पलीया कूँ, चौड़ कूँ, चौगट कूँ, काचा कूँ, कलवा कूँ, भूत कूँ, पलीत कूँ, जिन कूँ, राक्षस कूँ, बरियों से बरी कर दे। नजराँ जड़ दे ताला, इत्ता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे, माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे। चल डाकिनी, शाकिनी, चौडूँ मैला बाकरा, देस्यूँ मद की धार, भरी सभा में द्यूँ आने में कहाँ लगाई बार ? खप्पर में खाय, मसान में लौटे, ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे। राजा मेटे राज से जाय, प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय, जोगी मेटे ध्यान से जाय। शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा, चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का अनुष्ठान रविवार से प्रारम्भ करें। एक पत्थर का तीन कोनेवाला टुकड़ा लिकर उसे अपने सामने स्थापित करें। उसके ऊपर तेल और सिन्दूर का लेप करें। पान और नारियल भेंट में चढावें। वहाँ नित्य सरसों के तेल का दीपक जलावें। अच्छा होगा कि दीपक अखण्ड हो। मन्त्र को नित्य २१ बार ४१ दिन तक जपें। जप के बाद नित्य छार, छरीला, कपूर, केशर और लौंग की आहुति दें। भोग में बाकला, बाटी बाकला रखें (विकल्प में उड़द के पकोड़े, बेसन के लड्डू और गुड़-मिले दूध की बलि दें। मन्त्र में वर्णित सब कार्यों में यह मन्त्र काम करता है।

श्री भैरव मन्त्र
“ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र! हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत। कमर बिराज मस्तङ्गा लँगोट, घूँघर-माल। हाथ बिराज डमरु खप्पर त्रिशूल। मस्तक बिराज तिलक सिन्दूर। शीश बिराज जटा-जूट, गल बिराज नोद जनेऊ। ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा कारज करो तुरत। नित उठ करो आदेश-आदेश।”
विधिः पञ्चोपचार से पूजन। रविवार से शुरु करके २१ दिन तक मृत्तिका की मणियों की माला से नित्य अट्ठाइस (२८) जप करे। भोग में गुड़ व तेल का शीरा तथा उड़द का दही-बड़ा चढ़ाए और पूजा-जप के बाद उसे काले श्वान को खिलाए। यह प्रयोग किसी अटके हुए कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु है।

भैरव वशीकरण मन्त्र
१॰ “ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक-नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।”
विधिः- सर्व-प्रथम किसी रविवार को गुग्गुल, धूप, दीपक सहित उपर्युक्त मन्त्र का पन्द्रह हजार जप कर उसे सिद्ध करे। फिर आवश्यकतानुसार इस मन्त्र का १०८ बार जप कर एक लौंग को अभिमन्त्रित लौंग को, जिसे वशीभूत करना हो, उसे खिलाए।
२॰ “ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर। गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश। जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे। काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
विधिः- २१,००० जप। आवश्यकता पड़ने पर २१ बार गुड़ को अभिमन्त्रित कर साध्य को खिलाए।
३॰ “ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र को सात बार पढ़कर पीपल के पत्ते को अभिमन्त्रित करे। फिर मन्त्र को उस पत्ते पर लिखकर, जिसका वशीकरण करना हो, उसके घर में फेंक देवे। या घर के पिछवाड़े गाड़ दे। यही क्रिया ‘छितवन’ या ‘फुरहठ’ के पत्ते द्वारा भी हो सकती है।
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नजर उतारने के उपाय
१॰ बच्चे ने दूध पीना या खाना छोड़ दिया हो, तो रोटी या दूध को बच्चे पर से ‘आठ’ बार उतार के कुत्ते या गाय को खिला दें।
२॰ नमक, राई के दाने, पीली सरसों, मिर्च, पुरानी झाडू का एक टुकड़ा लेकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर से ‘आठ’ बार उतार कर अग्नि में जला दें। ‘नजर’ लगी होगी, तो मिर्चों की धांस नहीँ आयेगी।
३॰ जिस व्यक्ति पर शंका हो, उसे बुलाकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर उससे हाथ फिरवाने से लाभ होता है।
४॰ पश्चिमी देशों में नजर लगने की आशंका के चलते ‘टच वुड’ कहकर लकड़ी के फर्नीचर को छू लेता है। ऐसी मान्यता है कि उसे नजर नहीं लगेगी।
५॰ गिरजाघर से पवित्र-जल लाकर पिलाने का भी चलन है।
६॰ इस्लाम धर्म के अनुसार ‘नजर’ वाले पर से ‘अण्डा’ या ‘जानवर की कलेजी’ उतार के ‘बीच चौराहे’ पर रख दें। दरगाह या कब्र से फूल और अगर-बत्ती की राख लाकर ‘नजर’ वाले के सिरहाने रख दें या खिला दें।
७॰ एक लोटे में पानी लेकर उसमें नमक, खड़ी लाल मिर्च डालकर आठ बार उतारे। फिर थाली में दो आकृतियाँ- एक काजल से, दूसरी कुमकुम से बनाए। लोटे का पानी थाली में डाल दें। एक लम्बी काली या लाल रङ्ग की बिन्दी लेकर उसे तेल में भिगोकर ‘नजर’ वाले पर उतार कर उसका एक कोना चिमटे या सँडसी से पकड़ कर नीचे से जला दें। उसे थाली के बीचो-बीच ऊपर रखें। गरम-गरम काला तेल पानी वाली थाली में गिरेगा। यदि नजर लगी होगी तो, छन-छन आवाज आएगी, अन्यथा नहीं।
८॰ एक नींबू लेकर आठ बार उतार कर काट कर फेंक दें।
९॰ चाकू से जमीन पे एक आकृति बनाए। फिर चाकू से ‘नजर’ वाले व्यक्ति पर से एक-एक कर आठ बार उतारता जाए और आठों बार जमीन पर बनी आकृति को काटता जाए।
१०॰ गो-मूत्र पानी में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाए और उसके आस-पास पानी में मिलाकर छिड़क दें। यदि स्नान करना हो तो थोड़ा स्नान के पानी में भी डाल दें।
११॰ थोड़ी सी राई, नमक, आटा या चोकर और ३, ५ या ७ लाल सूखी मिर्च लेकर, जिसे ‘नजर’ लगी हो, उसके सिर पर सात बार घुमाकर आग में डाल दें। ‘नजर’-दोष होने पर मिर्च जलने की गन्ध नहीं आती।
१२॰ पुराने कपड़े की सात चिन्दियाँ लेकर, सिर पर सात बार घुमाकर आग में जलाने से ‘नजर’ उतर जाती है।
१३॰ झाडू को चूल्हे / गैस की आग में जला कर, चूल्हे / गैस की तरफ पीठ कर के, बच्चे की माता इस जलती झाडू को 7 बार इस तरह स्पर्श कराए कि आग की तपन बच्चे को न लगे। तत्पश्चात् झाडू को अपनी टागों के बीच से निकाल कर बगैर देखे ही, चूल्हे की तरफ फेंक दें। कुछ समय तक झाडू को वहीं पड़ी रहने दें। बच्चे को लगी नजर दूर हो जायेगी।
१४॰ नमक की डली, काला कोयला, डंडी वाली 7 लाल मिर्च, राई के दाने तथा फिटकरी की डली को बच्चे या बड़े पर से 7 बार उबार कर, आग में डालने से सबकी नजर दूर हो जाती है।
१५॰ फिटकरी की डली को, 7 बार बच्चे/बड़े/पशु पर से 7 बार उबार कर आग में डालने से नजर तो दूर होती ही है, नजर लगाने वाले की धुंधली-सी शक्ल भी फिटकरी की डली पर आ जाती है।
१६॰ तेल की बत्ती जला कर, बच्चे/बड़े/पशु पर से 7 बार उबार कर दोहाई बोलते हुए दीवार पर चिपका दें। यदि नजर लगी होगी तो तेल की बत्ती भभक-भभक कर जलेगी। नजर न लगी होने पर शांत हो कर जलेगी।
१७॰ “नमो सत्य आदेश। गुरु का ओम नमो नजर, जहाँ पर-पीर न जानी। बोले छल सो अमृत-बानी। कहे नजर कहाँ से आई ? यहाँ की ठोर ताहि कौन बताई ? कौन जाति तेरी ? कहाँ ठाम ? किसकी बेटी ? कहा तेरा नाम ? कहां से उड़ी, कहां को जाई ? अब ही बस कर ले, तेरी माया तेरी जाए। सुना चित लाए, जैसी होय सुनाऊँ आय। तेलिन-तमोलिन, चूड़ी-चमारी, कायस्थनी, खत-रानी, कुम्हारी, महतरानी, राजा की रानी। जाको दोष, ताही के सिर पड़े। जाहर पीर नजर की रक्षा करे। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
विधि- मन्त्र पढ़ते हुए मोर-पंख से व्यक्ति को सिर से पैर तक झाड़ दें।
१८॰ “वन गुरु इद्यास करु। सात समुद्र सुखे जाती। चाक बाँधूँ, चाकोली बाँधूँ, दृष्ट बाँधूँ। नाम बाँधूँ तर बाल बिरामनाची आनिङ्गा।”
najar_nashak
विधि- पहले मन्त्र को सूर्य-ग्रहण या चन्द्र-ग्रहण में सिद्ध करें। फिर प्रयोग हेतु उक्त मन्त्र के यन्त्र को पीपल के पत्ते पर किसी कलम से लिखें। “देवदत्त” के स्थान पर नजर लगे हुए व्यक्ति का नाम लिखें। यन्त्र को हाथ में लेकर उक्त मन्त्र ११ बार जपे। अगर-बत्ती का धुवाँ करे। यन्त्र को काले डोरे से बाँधकर रोगी को दे। रोगी मंगलवार या शुक्रवार को पूर्वाभिमुख होकर ताबीज को गले में धारण करें।
१९॰ “ॐ नमो आदेश। तू ज्या नावे, भूत पले, प्रेत पले, खबीस पले, अरिष्ट पले- सब पले। न पले, तर गुरु की, गोरखनाथ की, बीद याहीं चले। गुरु संगत, मेरी भगत, चले मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
विधि- उक्त मन्त्र से सात बार ‘राख’ को अभिमन्त्रित कर उससे रोगी के कपाल पर टिका लगा दें। नजर उतर जायेगी।
२०॰ “ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय, ह्रीं धरणेन्द्र-पद्मावती सहिताय। आत्म-चक्षु, प्रेत-चक्षु, पिशाच-चक्षु-सर्व नाशाय, सर्व-ज्वर-नाशाय, त्रायस त्रायस, ह्रीं नाथाय स्वाहा।”
विधि- उक्त जैन मन्त्र को सात बार पढ़कर व्यक्ति को जल पिला दें।
२१॰ “टोना-टोना कहाँ चले? चले बड़ जंगल। बड़े जंगल का करने ? बड़े रुख का पेड़ काटे। बड़े रुख का पेड़ काट के का करबो ? छप्पन छुरी बनाइब। छप्पन छुरी बना के का करबो ? अगवार काटब, पिछवार काटब, नौहर काटब, सासूर काटब, काट-कूट के पंग बहाइबै, तब राजा बली कहाईब।”
विधि- ‘दीपावली’ या ‘ग्रहण’-काल में एक दीपक के सम्मुख उक्त मन्त्र का २१ बार जप करे। फिर आवश्यकता पड़ने पर भभूत से झाड़े, तो नजर-टोना दूर होता है।
२२॰ डाइन या नजर झाड़ने का मन्त्र
“उदना देवी, सुदना गेल। सुदना देवी कहाँ गेल ? केकरे गेल ? सवा सौ लाख विधिया गुन, सिखे गेल। से गुन सिख के का कैले ? भूत के पेट पान कतल कर दैले। मारु लाती, फाटे छाती और फाटे डाइन के छाती। डाइन के गुन हमसे खुले। हमसे न खुले, तो हमरे गुरु से खुले। दुहाई ईश्वर-महादेव, गौरा-पार्वती, नैना-जोगिनी, कामरु-कामाख्या की।”
विधि- किसी को नजर लग गई हो या किसी डाइन ने कुछ कर दिया हो, उस समय वह किसी को पहचानता नहीं है। उस समय उसकी हालत पागल-जैसी हो जाती है। ऐसे समय उक्त मन्त्र को नौ बार हाथ में ‘जल’ लेकर पढ़े। फिर उस जल से छिंटा मारे तथा रोगी को पिलाए। रोगी ठीक हो जाएगा। यह स्वयं-सिद्ध मन्त्र है, केवल माँ पर विश्वास की आवश्यकता है।

२३॰ नजर झारने के मन्त्र
१॰ “हनुमान चलै, अवधेसरिका वृज-वण्डल धूम मचाई। टोना-टमर, डीठि-मूठि सबको खैचि बलाय। दोहाई छत्तीस कोटि देवता की, दोहाई लोना चमारिन की।”
२॰ “वजर-बन्द वजर-बन्द टोना-टमार, डीठि-नजर। दोहाई पीर करीम, दोहाई पीर असरफ की, दोहाई पीर अताफ की, दोहाई पीर पनारु की नीयक मैद।”
विधि- उक्त मन्त्र से ११ बार झारे, तो बालकों को लगी नजर या टोना का दोष दूर होता है।
२४॰ नजर-टोना झारने का मन्त्र
“आकाश बाँधो, पाताल बाँधो, बाँधो आपन काया। तीन डेग की पृथ्वी बाँधो, गुरु जी की दाया। जितना गुनिया गुन भेजे, उतना गुनिया गुन बांधे। टोना टोनमत जादू। दोहाई कौरु कमच्छा के, नोनाऊ चमाइन की। दोहाई ईश्वर गौरा-पार्वती की, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- नमक अभिमन्त्रित कर खिला दे। पशुओं के लिए विशेष फल-दायक है।

२५॰ नजर उतारने का मन्त्र
“ओम नमो आदेश गुरु का। गिरह-बाज नटनी का जाया, चलती बेर कबूतर खाया, पीवे दारु, खाय जो मांस, रोग-दोष को लावे फाँस। कहाँ-कहाँ से लावेगा? गुदगुद में सुद्रावेगा, बोटी-बोटी में से लावेगा, चाम-चाम में से लावेगा, नौ नाड़ी बहत्तर कोठा में से लावेगा, मार-मार बन्दी कर लावेगा। न लावेगा, तो अपनी माता की सेज पर पग रखेगा। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा।”
विधिः- छोटे बच्चों और सुन्दर स्त्रियों को नजर लग जाती है। उक्त मन्त्र पढ़कर मोर-पंख से झाड़ दें, तो नजर दोष दूर हो जाता है।

२६॰ नजर-टोना झारने का मन्त्र
“कालि देवि, कालि देवि, सेहो देवि, कहाँ गेलि, विजूवन खण्ड गेलि, कि करे गेलि, कोइल काठ काटे गेलि। कोइल काठ काटि कि करति। फलाना का धैल धराएल, कैल कराएल, भेजल भेजायल। डिठ मुठ गुण-वान काटि कटी पानि मस्त करै। दोहाई गौरा पार्वति क, ईश्वर महादेव क, कामरु कमख्या माई इति सीता-राम-लक्ष्मण-नरसिंघनाथ क।”
विधिः- किसी को नजर, टोना आदि संकट होने पर उक्त मन्त्र को पढ़कर कुश से झारे।
नोट :- नजर उतारते समय, सभी प्रयोगों में ऐसा बोलना आवश्यक है कि “इसको बच्चे की, बूढ़े की, स्त्री की, पुरूष की, पशु-पक्षी की, हिन्दू या मुसलमान की, घर वाले की या बाहर वाले की, जिसकी नजर लगी हो, वह इस बत्ती, नमक, राई, कोयले आदि सामान में आ जाए तथा नजर का सताया बच्चा-बूढ़ा ठीक हो जाए। सामग्री आग या बत्ती जला दूंगी या जला दूंगा।´´
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आँख की फूली काटने का मन्त्र
“उत्तर काल, काल। सुन जोगी का बाप। इस्माइल जोगी की दो बेटी-एक माथे चूहा, एक काते फूला। दूहाई लोना चमारी की। एक शब्द साँचा, पिण्ड काँचा, फुरो मन्त्र-ईश्वरो वाचा”
विधिः- पर्वकाल में एक हजार बार जप कर सिद्धकर लें। फिर मन्त्र को २१ बार पढ़ते हुए लोहे की कील को धरती में गाड़ें, तो ‘फूली’ कटने लगती है।
दाद का मन्त्र
“ओम् गुरुभ्यो नमः। देव-देव। पूरा दिशा भेरुनाथ-दल। क्षमा भरो, विशाहरो वैर, बिन आज्ञा। राजा बासुकी की आन, हाथ वेग चलाव।”
विधिः- किसी पर्वकाल में एक हजार बार जप कर सिद्ध कर लें। फिर २१ बार पानी को अभिमन्त्रित कर रोगी को पिलावें, तो दाद रोग जाता है।
पीलिया का मंत्र
“ओम नमो बैताल। पीलिया को मिटावे, काटे झारे। रहै न नेंक। रहै कहूं तो डारुं छेद-छेद काटे। आन गुरु गोरख-नाथ। हन हन, हन हन, पच पच, फट् स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र को ‘सूर्य-ग्रहण’ के समय १०८ बार जप कर सिद्ध करें। फिर शुक्र या शनिवार को काँसे की कटोरी में एक छटाँक तिल का तेल भरकर, उस कटोरी को रोगी के सिर पर रखें और कुएँ की ‘दूब’ से तेल को मन्त्र पढ़ते हुए तब तक चलाते रहें, जब तक तेल पीला न पड़ जाए। ऐसा २ या ३ बार करने से पीलिया रोग सदा के लिए चला जाता है।
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शत्रु-मोहन
“चन्द्र-शत्रु राहू पर, विष्णु का चले चक्र। भागे भयभीत शत्रु, देखे जब चन्द्र वक्र। दोहाई कामाक्षा देवी की, फूँक-फूँक मोहन-मन्त्र। मोह-मोह-शत्रु मोह, सत्य तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र।। तुझे शंकर की आन, सत-गुरु का कहना मान। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं टं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा।।”
विधिः- चन्द्र-ग्रहण या सूर्य-ग्रहण के समय किसी बारहों मास बहने वाली नदी के किनारे, कमर तक जल में पूर्व की ओर मुख करके खड़ा हो जाए। जब तक ग्रहण लगा रहे, श्री कामाक्षा देवी का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का पाठ करता रहे। ग्रहण मोक्ष होने पर सात डुबकियाँ लगाकर स्नान करे। आठवीं डुबकी लगाकर नदी के जल के भीतर की मिट्टी बाहर निकाले। उस मिट्टी को अपने पास सुरक्षित रखे। जब किसी शत्रु को सम्मोहित करना हो, तब स्नानादि करके उक्त मन्त्र को १०८ बार पढ़कर उसी मिट्टी का चन्दन ललाट पर लगाए और शत्रु के पास जाए। शत्रु इस प्रकार सम्मोहित हो जायेगा कि शत्रुता छोड़कर उसी दिन से उसका सच्चा मित्र बन जाएगा।

सभा मोहन
“गंगा किनार की पीली-पीली माटी। चन्दन के रुप में बिके हाटी-हाटी।। तुझे गंगा की कसम, तुझे कामाक्षा की दोहाई। मान ले सत-गुरु की बात, दिखा दे करामात। खींच जादू का कमान, चला दे मोहन बान। मोहे जन-जन के प्राण, तुझे गंगा की आन। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं टं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा।।”
विधिः- जिस दिन सभा को मोहित करना हो, उस दिन उषा-काल में नित्य कर्मों से निवृत्त होकर ‘गंगोट’ (गंगा की मिट्टी) का चन्दन गंगाजल में घिस ले और उसे १०८ बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर श्री कामाक्षा देवी का ध्यान कर उस चन्दन को ललाट (मस्तक) में लगा कर सभा में जाए, तो सभा के सभी लोग जप-कर्त्ता की बातों पर मुग्ध हो जाएँगे।
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दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र
 “डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका खपर-धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड-मुण्ड भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी। अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”
 विधि- नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।
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होली पर करने योग्य टोटके

१॰ यदि किसी ने आपके व्यवसाय अथवा निवास पर कोई तंत्र क्रिया करवा रखी हो, तो होली की रात्रि में जिस स्थान पर होलिका दहन हो, उस स्थान पर एक गड्ढा खोसकर उसमें ११ अभिमंत्रित कौड़ियाँ दबा दें । अगले दिन कौड़ियों को निकालकर व्यवसाय स्थल की मिट्टी के साथ नीले वस्त्र में बांधकर बहते जल में प्रवाहित कर दें । तंत्र क्रिया नष्ट हो जाएगी ।
२॰ यदि आपके कार्यों में लगातार बाधाएँ आ रही हो, अथवा घर में अचानक ही अप्रिय घटनाएँ घटित होती हों, जिसके कारण बड़ी हानि उठानी पड़ती हो अथवा आपको लगता हो कि आपके घर पर कोई ऊपरी चक्कर है अथवा किसी ने कोई बन्दिश करवा दी है, तो आप इस उपाय के माध्यम से उपरोक्त सभी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं ।
होली की रात्रि में घर में किसी शुद्ध स्थान पर गोबर से लीपकर उसपर अष्टदल बनाएं । फिर एक बाजोट रखकर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर अभिमंत्रित ३ लघु नारियल तथा श्री हनुमान यंत्र को स्थान दें । इसके बाद एक पात्र में थोड़ा-सा गाय का कच्चा दूध रखें तथा अलग से पंचगव्य रखें । फिर नारियल व यंत्र पर रोली से तिलक करके प्रभु श्री हनुमान् जी से अपनी समस्या के समाधान का निवेदन करें और गुड़ का भोग लगाएँ ।
तत्पश्चात् शुद्ध घी के दीपक के साथ चन्दन की अगरबत्ती व गुग्गुल की धूप अर्पित करें । फिर ताँबे की प्लेट पर रोली से “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्” मंत्र लिखकर एक सामान्य नारियल को फोड़कर (पधारकर) उसके पानी को अपने साधना स्थल पर छिड़क दें और नारियल को प्लेट के पास रख दें । फिर मूंगे की माला से “ॐ घण्टाकर्णो महावीर सर्व उपद्रव नाशय कुरु-कुरु स्वाहा” मंत्र की तीन माला का जप करें । मंत्र समाप्त होने के बाद प्रणाम करके बाहर आ जाएँ । गाय के दूध को अपने घर के चारों ओर घुमते हुए धारा के रुप में बिखराकर कवच जैसा बना दें और पंचगव्य से मुख्यद्वार को लीप दें ।
अगले दिन स्नान करके प्रभु को भोग व धूप-दीप अर्पत करके घण्डाकर्ण मंत्र की पुनः तीन माला का जप करें । इस प्रकार यह क्रिया लगातार ११ दिन तक करें । ११वें दिन मंत्र जप के बाद १४-१८ वर्ष के किसी लड़के को भोजन कराकर दक्षिणा और वस्त्र आदि दें । फिर उसका चरण स्पर्श कर विदा करें । उसके जाने के बाद लाल वस्त्र पर लघु नारियल, यंत्र और टूटा नारियल रखकर एक पोटली का रुप दें । उसको किसी लकड़ी के डिब्बे में रखकर अपने घर में कहीं भी गड्ढा खोदकर दबा दें ।
अब ताँबे की जिस प्लेट में आपने प्रभु का नाम लिखा था, उसमें गंगाजल डालकर धो लें और उस जल को अपने घर में छिड़क दें । यदि आप किसी फ्लैट में रहते हों, जहाँ आपको पोटली दबाने का स्थान न मिले, तो अपने फ्लैट के पास किसी कच्चे स्थान पर दबा सकते हैं । इस उपाय से कुछ ही समय बाद आप चमत्कारिक परिवर्तन अनुभव करेंगे । यदि यह उपाय होली पर नहीं कर पाते, तो शुक्ल पक्ज़ के प्रथम मंगलवार से आरम्भ करें । सभी समस्या दूर हो जायेगी ।
३॰ व्यवसाय में सफलता के लिए आप जब होली जल जाए, तब आप होलिका की थोड़ी-सी अग्नि ले आएं । फिर अपने दुकान एवं व्यवसाय स्थल के आग्नेय कोण में उस अग्नि की मदद से सरसों के तेल का दीपक जला दें । इस उपाय से आपके दुकान व व्यवसाय स्थल की सारी नकारात्मक ऊर्जा जलकर समाप्त हो जाएगी । इससे आपके दुकान एवं व्यवसाय में सफलता मिलेगी ।
४॰ यदि आपके परिवार अथवा परिचितों में कोई व्यक्ति अधिक समय से अस्वस्थ हो, तो उसके लिए यह उपाय लाभकारी होगा । होली की रात्रि में सफेद वस्त्र में ११ अभिमंत्रित गोमती चक्र, नागकेसर के २१ जोड़े तथा ११ धनकारक कौड़ियाँ बांधकर कपड़े पर हरसिंगार तथा चन्दन का इत्र लगाकर रोगी पर से सात बार उसारकर किसी शिव मन्दिर में अर्पित करें । व्यक्ति तुरन्त स्वस्थ होने लगेगा । यदि बिमारी गम्भीर हो, तो यह क्रिया शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ करके लगातार ७ सोमवार को करें ।
५॰ यदि आप अपना कोई विशेष कार्य सिद्ध करना चाहते हों अथवा कोई व्यक्ति गम्भीर रुप से रोगग्रस्त हो, तो होली की रात्रि में किसी काले कपड़े में काली हल्दी तथा खोपरे में बूरा भरकर पोटली बनाकर पीपल के वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर दबा दें । फिर पीपल के वृक्ष को आटे से निर्मित सरसों के तेल का दीपक, धूप-अगरबत्ती तथा मीठा जल अर्पित करें । इसके बाद आठ अभिमंत्रित गोमती चक्र पीपल पर ही छोड़कर पीछे देखे बिना घर आ जाएं । शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को जाकर सिर्फ उपरोक्त प्रकार से दीपक व धूप-अगरबत्ती अर्पित करके छोड़े गए गोमती चक्र ले आएं । जब तक कार्य सिद्ध न हो, वह गोमती चक्र अपनी जेब में रखें अथवा जो व्यक्ति रोग-ग्रस्त हो, उसके सिरहाने रख दें । कुछ ही समय में आपके कार्य सिद्ध होने लगेंगे अथवा अस्वस्थ व्यक्ति स्वस्थ लाभ करेगा ।
६॰ यदि आप आर्थिक संकट से ग्रस्त हैं, तो जिस स्थान पर होलिका जलती हो, उस स्थान पर गड्ढा खोदकर अपने मध्यमा अंगुली के लिए बनने वाले छल्ले की मात्रा के अनुसार चाँदी, पीतल व लोहा दबा दें । फिर मिट्टी से ढककर लाल गुलाल से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं । जब आप होलिका पूजन को जाएं, तो पान के एक पत्ते पर कपूर, थोड़ी-सी हवन सामग्री, शुद्ध घी में डुबोया लौंग का जोड़ा तथा बताशै रखें । दूसरे पान के पत्ते से उस पत्ते को ढक दें और सात बार परिक्रमा करते हुए “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें । परिक्रमा समाप्त होने पर सारी सामग्री होलिका में अर्पित कर दें तथा पूजन के बाद प्रणाम करके घर वापस आ जाएं । अगले दिन पान के पत्ते वाली सारी नई सामग्री ले जाकर पुनः यही क्रिया करें । जो धातुएं आपने दबाई हैं, उनको निकाल लाएं । फिर किसी सुनार से तीनों धातुओं को मिलाकर अपनी मध्यमा अंगुली के माप का छल्ला बनवा लें । १५ दिन बाद आने वाले शुक्ल पक्ष के गुरुवार को छल्ला धारण कर लें । जब तक आपके पास यह छल्ला रहेगा, तब तक आप कभी भी आर्थिक संकट में नहीं आएंगे ।
७॰ यदि आप किसी प्रकार की आर्थिक समस्या से ग्रस्त हैं, तो होली पर यह उपाय अवश्य करें । होली की रात्रि में चन्द्रोदय होने के बाद अपने निवास की छत पर अथवा किसी खुले स्थान पर आ जाएं । फिर चन्द्रदेव का स्मरण करते हुए चाँदी की एक प्लेट में सूखे छुहारे तथा कुछ मखाने रखकर शुद्ध घी के दीपक के साथ धूप एवं अगरबत्ती अर्पित करें । अब दूध से अर्घ्य प्रदान करें । अर्घ्य के बाद कोई सफेद प्रसाद तथा केसर मिश्रित साबूदाने की खीर अर्पित करें । चन्द्रदेव से आर्थिक संखट दूर कर समृद्धि प्रदान करने का निवेदन करें । बाद में प्रसाद और मखानों को बच्चों में बांट दें । आप प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्रदेव को दूध का अर्घ्य अवश्य दें । कुछ ही दिनों में आप अनुभव करेंगे कि आर्थिक संकट दूर होकर समृद्धि बढ़ रही है ।
८॰ होली के दिन अपने घर पर अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान में सूर्य डूबने से पहले धूप-दीप करें । घर व प्रतिष्ठान की सारी लाइट जला दें तथा मन्दिर के सामने माँ लक्ष्मी का कोई मंत्र ११ बार मानसिक रुप से जपें । तत्पश्चात् घर अथवा प्रतिष्ठान की कोई भी कील लाकर जिस स्थान पर होली जलनी हो, वहां की मिट्टी में दबा दें । अगले दिन उस कील को निकालकर मुख्य-द्वार के बाहर की मिट्टी में दबा दें । इस उपाय से आपके निवास अथवा प्रतिष्ठान में किसी प्रकार की नकारात्मक शक्ति का प्रवेश नहीं होगा । आप आर्थिक संकट में भी नहीं आएंगे ।
९॰ यदि आप पर किसी प्रकार का कोई कर्ज है, तो होली की रात्ति में यह उपाय करके कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं । जिस स्थान पर होली जलनी हो, उस स्थान पर एक छोटा-सा गड्ढा खोदकर उसमें तीन अभिमंत्रित गोमती चक्र तथा तीन कौड़ियाँ दबा दें । फिर मिट्टी में लाल गुलाल व हरा गुलाल मिलाकर उस गड्ढे को भरकर उसके ऊपर पीले गुलाल से कर्जदार का नाम लिख दें । जब होली जले तब आप पान के पत्ते पर ३ बतासे, घी में डुबोया एक जोड़ा लौंग, तीन बड़ी इलायची, थोड़े-से काले तिल व गुड़ की एक डली रखकर तथा सिन्दूर छिड़ककर पान के पत्ते से ढक दें ।
अब सात परिक्रमा करते हुए प्रत्येक बार निम्न मंत्र का जप करके एक-एक गोमती चक्र होलिका में डालतेजाएं - “ल्रीं ल्रीं फ्रीं फ्रीं अमुक कर्ज विनश्यते फट् स्वाहा” यहां अमुक के स्थान पर कर्जदार का नाम लें । परिक्रमा करने के बाद प्रणाम करके वापस आ जाएं । अगले दिन जाकर सर्वप्रथम तीन अगरबत्ती दिखाकर गड्ढे में से सामग्री निकाल लें और थोड़ी-सी गुलाल मिश्रित मिट्टी भी ले लें । फिर सभी को किसी नदी में प्रवाहित कर दें । कुछ ही समय में कर्ज मुक्ति के मार्ग निर्मित होने लगेंगे ।
१०॰ आपने देखा होगा कि किसी निवास या व्यवसाय स्थल पर अचानक ही कुछ अजीबो-गरीब घटनाएं घटित होती हैं अथवा उस स्थान पर जो व्यक्ति प्रवेश करता है, उसके मन में डर के साथ अजीब-सी घुटन होने लगती है अथवा बिना बात के नुकसान या झगड़े होने लगते हैं । यदि आपके साथ ऐसा कुछ होता है, तो समझ जाएं कि आप पर अथवा उस स्थान पर किसी प्रकार की कोई ऊपरी बाधा का प्रभाव है । जब तक आप उस बाधा से मुक्ति नहीं पा लेंगे, तब तक आप ऐसे ही परेशान रहेंगे । इस बाधा से मुक्ति पाने के लिए आप यह उपाय अवश्य करें ।
जिस स्थान पर यह बाधा है, उस स्थान के सर्वाधिक निकट जो भी वृक्ष हो, उसको देखें । यदि पीपल का वृक्ष हो, तो बहुत अच्छा है । होली के पूर्व शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को अंधेरा होने पर आप उस स्थान पर जाएं, जिस स्थान पर वृक्ष है । फिर ताँबे के एक पात्र में दूध में थोड़ी-सी शक्कर मिश्रित करें और खोए के तीन लड्डू, थोड़ी-सी साबूदाने की खीर, ११ हरी इलायची, २१ बताशे, दूध से बनी थोड़ी-सी कोई भी अन्य मिठाई तथा एक सूखे खोपरे में बूरा भरकर उसके मध्य लौंग का एक जोड़ा रखकर उस वृक्ष की जड़ में अर्पित करें । साथ ही २१ अगरबत्ती भी अर्पित करें । यही क्रिया किसी मन्दिर में लगे पीपल के वृक्ष पर भी करें । प्रथम बार के प्रयोग से ही आप परिवर्तन अनुभव करेंगे । यदि समस्या अधिक है, तो यह क्रिया ३, ५, ७ या ११ सोमवार तक करें । आप निश्चित रुप से ऊपरी बाधा से मुक्ति पा लेंगे । परन्तु इतना ध्यान रखें कि बाधा से मुक्ति के बाद आप प्रभु श्री हनुमान् जी के नाम पर कुछ दान अवश्य करें ।
११॰ यदि आपको ऐसा लगे कि आपके निवास अथवा व्यवसाय स्थल पर कोई ऊपरी बाधा है, तो आप इस उपाय द्वारा उस बाधा से मुक्ति पा सकते हैं । होली की रात्रि में गाय के गोबर से इक दीपक बनाएं । इसके बाद उसमें सरसों का तेल, लौंग का जोड़ा, थोड़ा-सा गुड़ और काले तिल डाल दें । फिर दीफक को अपने मुख्य द्वार के बिल्कुल मध्य स्थान पर रख दें । द्वार की चौखट के बाहर आठ सौ ग्राम काली साबूत उड़द को फैला दें ।
अब द्वार के अन्दर आकर दीपक को जला दें और द्वार बन्द कर दें । अगले दिन ठण्डा दीपक उठाकर घर के बाहर रख दें और झाड़ू की मदद से सारी उड़द को समेट लें । फिर ठण्डा दीपक और उड़द को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें । तत्पश्चात् घर वापस आ जाएं तथा हाथ-पैर धोकर ही घर में प्रवेश करें । इसके बाद आप अगले शनिवार से पुनः यही क्रिया लगातार तीन शनिवार करें । यदि आपको लगे कि बाधा अधिक बड़ी है, तो अगले शुक्ल पक्ष से पुनः तीन बार यह क्रिया दोहराएं । कार्य सिद्ध हो जाने पर शनिवार को ही किसी भी पीपल के वृक्ष में मीठे जल के साथ धूप-दीप अर्पित करें । इस उपाय द्वारा आप ऊपरी बाधा से मुक्ति पा लेंगे ।
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श्री गुरु गोरखनाथ का शाबर मंत्र

विधि - सात कुओ या किसी नदी से सात बार जल लाकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रोगी को स्नान करवाए तो उसके ऊपर से सभी प्रकार का किया-कराया उतर जाता है.

मंत्र

ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा.

 श्री गुरु गोरखनाथ का शाबर मंत्र
विधि - सात कुओ या किसी नदी से सात बार जल लाकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रोगी को स्नान करवाए तो उसके ऊपर से सभी प्रकार का किया-कराया उतर जाता है.
मंत्र
ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा.
श्री गुरु गोरखनाथ का शाबर मंत्र

विधि - सात कुओ या किसी नदी से सात बार जल लाकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रोगी को स्नान करवाए तो उसके ऊपर से सभी प्रकार का किया-कराया उतर जाता है.

मंत्र

ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा.

प्रत्येक साधना के कुछ नियम होते है, इसी प्रकार साबर साधनाओं में भी कुछ विशेष नियम होते है ! इन नियमों का पालन किये बिना सिद्धि मिलना बहुत मुश्किल होता है और यदि इन नियमों का पालन किया जाएँ तो साबर साधनाएँ जल्दी सिद्ध हो जाती है ! जिस प्रकार वैदिक रीति में करन्यास, अंगन्यास आदि का महत्त्व है , उसी प्रकार साबर साधनाओं में आसन जाप और शारीर कीलन का महत्त्व है ! आप लोगो की सुविधा के लिए आसन जाप की आसान विधि दी जा रही है ! किसी भी साधना को करने से पहले इन मंत्रो का प्रयोग अवश्य करें ! यह मंत्र स्वयं सिद्ध है , इन्हें सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है  !
आसन बिछाते हुए इस मन्त्र का जाप करे और आसन को नमस्कार करे -
ॐ नमो आदेश श्री गुरूजी को,
अंतर मन्त्र ढाई कंकर
जय शिव शंकर
अब आसन पर बैठ कर आसन जाप पढ़े -
सत नमो आदेश,गुरूजी को आदेश,
ॐ गुरूजी मन मारू मैदा करू,करू चकनाचूर
पांच महेश्वर आज्ञा करे तो बैठू आसन पूर
श्री नाथ जी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश


पूजा  के बाद आसन उठाते हुए इस मन्त्र का जाप करे, आसन उठाने का मन्त्र -
ॐ  सत नमो आदेश,गुरूजी को आदेश
ॐ गुरूजी, ॐ तरो तरो महेश्वर करणी उतारो पार
संत चले घर अपने मंदिर जय जयकार
श्रीनाथजी  गुरूजी को आदेश आदेश आदेश
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ब्रह्मचर्य रक्षा मंत्र
यह प्रयोग स्वयं सिद्ध है ! इसे सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है ! फिर भी पर्व काल में एक माला जप ले !
जिन लोगों की साधना बार बार स्वप्नदोष की वजह से भंग हो जाती है वह इसका इस्तेमाल जरुर करे !
एक बात का हमेशा ख्याल रखे कि यदि आपका मन पवित्र नहीं है तो किसी भी उपाय से ब्रह्मचर्य की रक्षा नहीं हो सकती !
|| मंत्र |
“सत नमो आदेश ! गुरूजी को आदेश !
पारा पारा महापारा पारा पहुंचा दशमे द्वारा दशमे द्वारे कौन पहुंचाए ?
गुरु गोरखनाथ पहुचाये , जो न पहुंचाए तो हनुमान का ब्रहमचर्य खंडित हो जाये ,
माता अन्जनी की आन चले , गुरु गोरख का वान चले ,
मेरा ब्रहमचर्य जाये तो हनुमान त्रिया राज्य में रानी मैनाकनी को भोग के आये !
दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ आओ जैसे हनुमान का ब्रहमचर्य रखा हमारी भी लाज बचाओ !
ॐ गुरूजी भग में लिंग , लिंग में पारा जो राखे वही गुरु हमारा !
काम कामनी की यह आग इसे मिटावे गोरखनाथ
माया का पर्दा देयो हटा दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ !
दुहाई दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की ! आदेश गुरु गोरख के !
नाथ जी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश !
|| विधि ||
रात को सोते समय इस मंत्र को 21 बार जप करे और लाल लंगोट धारण करे ! लंगोट धारण करते वक़्त भी इस मंत्र का जाप करे !
भगवान से हमारी यही कामना है कि आपको साधनाओं में सफलता प्रदान करे !

मंत्र –ऐं भग भुगे ऐं भगिनि ऐं भगोदरी ऐं भग क्लिन्ने ऐं भगावहे ऐं भग गुह्ये ऐं भग योने ऐं भगनिपातिनि ऐं भग सवेवदि ऐं भग वशंकरी ऐं भगरूपे ऐं भग नित्ये ऐं भग क्लिन्ने ऐं भगस्वरूपे सवेभगानि. में ह्यानय ऐं भगक्लिन्ने द्रवे भगं क्लेदय भगं द्रावय भगामोघे भगविच्चे भगं च्छोभय सवेसत्वान भगेश्वरी ऐं भग ब्लूं ऐं भग जं ऐं भग मे  ऐं भग व्लूं ऐं भग मो भग क्लिन्ने सवाेनि भगानि में ऐं भग व्लूं ऐं भग हें भग क्लिन्ने सवाेनि भगानि में वशमानये भग ऐं भग ब्लूं ऐं भग हें ऐं भग ब्लूं ऐं भग हें ऐं द्रां द्रीं क्लीं ब्लूं सः भग हर ब्लें भगमालिन्यै .

यह २२४ अक्छर का मंत्र है .१३५ और १५२ अक्छर के मंत्र भी हैं .

तंत्र बीज मंत्र–ह्रीं क्लीं क्लीं भगेश्वरी क्लीं क्लीं ह्रीं फट् स्वाहा .


साधना मे रक्षा हेतु हनुमान शाबर मंत्र

1,,साधना मे रक्षा हेतु हनुमान शाबर मंत्र

इस शाबर मंत्र को किसी शुभ दिन जैसे ग्रहण, होली, रवि पुष्य योग, गुरु पुष्य योग मे 1008 बार जप कर
सिद्ध कर ले । माला लाल मुंगे या तुलसी जो प्राण प्रतिष्ठीत हो । वस्त्र लाल, दिशा उत्तर या पुर्व, आसन ऊन का । इस मंत्र का जाप आप हनुमान मंदिर मे करेंगे तो ज्यादा उचित है । नही तो घर पर भी कर सक्ते है । हनुमान जी का विधी विधान से पुजन करके 11 लड्डुओ का तुलसी दल रख कर भोग लगा कर जप शुरू कर दे । जप समाप्त होने पर हनुमान जी को प्रणाम करे बस आपका मंत्र सिद्ध हो गया ।
प्रयोग :- जब भी आप कोई साधना करे तो मात्र 7 बार इस मंत्र का जाप करके रक्षा घेरा बनाने से स्वयं
हनुमान जी रक्षा करते है । इस मंत्र का 7 बार जप कर के ताली बजा देने से भी पूर्ण तरह से रक्षा होती है । और इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद रोज इस मंत्र की 1 माला जाप करने पर टोना जादु साधक पर असर नही करते ।
मंत्र :-
॥ ओम नमो हनुमान  वज्र का कोठा, जिसमे पिंण्ड हमारा पैठा,

ईश्वर कुंजी ब्रम्हा ताला, मेरे आठो याम का यति हनुमंत रखवाला ।

2,,प्राणों की रक्षा हेतु मंत्र/रक्षा कवच बनाने के लिए

हनुमानजी जब लंका से आये तो राम जी ने उनको पूछा कि , रामजी के वियोग में सीताजी अपने प्राणो की रक्षा कैसे करती हैं ?
तो हनुमान जी ने जो जवाब दिया उसे याद कर लो । अगर आप के घर में कोई अति अस्वस्थ है, जो बहुत बिमार है, अब नहीं बचेंगे ऐसा लगता हो, सभी डॉक्टर दवाईयाँ भी जवाब दे गईं हों, तो ऐसे व्यक्ति की प्राणों की रक्षा इस मंत्र से करो..उस व्यक्ति के पास बैठकर ये हनुमानजी का मंत्र जपो..तो ये सीता जी ने अपने प्राणों की रक्षा कैसे की ये हनुमानजी के वचन हैं..(सब बोलना)

नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ॥

इसक अर्थ भी समझ लीजिये ।
' नाम पाहरू दिवस निसि ' ..... सीता जी के चारों तरफ आप के नाम का पहरा है । क्योंकि वे रात दिन आप के नाम का ही जप करती हैं । सदैव राम जी का ही ध्यान धरती हैं और जब भी आँखें खोलती हैं तो अपने चरणों में नज़र टिकाकर आप के चरण कमलों को ही याद करती रहती हैं ।

तो ' जाहिं प्रान केहिं बाट '..... सोचिये की आप के घर के चरों तरफ कड़ा पहरा है । छत और ज़मीन की तरफ से भी किसी के घुसने का मार्ग बंद कर दिया है, क्या कोई चोर अंदर घुस सकता है..? ऐसे ही सीता जी ने सभी ओर से श्री रामजी का रक्षा कवच धारण कर लिया है ..इस प्रकार वे अपने प्राणों की रक्षा करती हैं । तो ये मंत्र श्रद्धा के साथ जपेंगे तो आप भी किसी के प्राणों की रक्षा कर सकते हैं ।

रक्षा कवच बनाने के लिए
दिन में 3-4 बार शांति से बैठें , 2-3 मिनिट होठो में जप करे और फिर चुप हो गए। ऐसी धारणा करे की मेरे चारो तरफ भगवान का नाम मेरे चारो ओर घूम रहा हें। भगवान का नाम का घेरा मेरी रक्षा कर रहा है।

3,,,कार्य सिद्धि के लिए

“ॐ गं गणपतये नमः”

Om gam ganpatay Namah

हर कार्य शुरु करने से पहले इस मंत्र का 108 बार जप करें, कार्य सिद्ध होगा

4..मृत्युभय से रक्षा करेगा यह शिव मंत्र

जो जिस श्रद्धा के साथ भगवान का ध्यान करते हैं, भगवान भी उनका उतना ही ध्यान रखते हैं। शिवलिंग प्रतीक हैं विश्व-ब्रह्मांड का जिसके कण-कण में भगवान शिव का वास है और शिवलिंग पर विभिन्न सामग्रियों जैसे-दूध, दही, गंगाजल, घृत, गन्ने का रस, सुगंधित द्रव्य आदि से अभिषेक करने का यही तात्पर्य है कि इन विभिन्न सामग्रियों के माध्यम से हम विश्व वसुधा को समुन्नत कर रहे हैं। अपने कर्मों को विभिन्न रूपों में शिवरूपी ब्रह्मांड को अर्पण कर रहे हैं। यह समर्पण की भावना ही हमें शिव की ओर अर्थात कल्याण की ओर ले जाती है।

भगवान शिव की पूजा केवल कर्मकांड, मनोकामना पू्र्ति के लिए ही नहीं है यह पूजा इसलिए भी है कि व्यक्ति का मन स्वच्छ हो। जिस तरह हम भगवान शिव का जल-दुग्ध आदि पवित्र द्रव्यों से अभिषेक करते हैं उसी तरह हम भी अपने मन को निरंतर निर्मल करते रहें, जिस तरह हम विभिन्न सामग्रियों को भगवान को अर्पण करते हैं, उसी तरह इस विश्व-वसुधा की भी सेवा करते रहें।

शिवलिंग का जल स्नान कराने के बाद पंचोपचार पूजा यानी सफेद चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, आंकडे के फूल व मिठाई का भोग लगाकर इस आसान शिव मंत्र का ध्यान जीवन में शुभ-लाभ की कामना से करें। यह शिव मंत्र मृत्युभय, दरिद्रता व हानि से रक्षा करने वाला भी माना गया है-

पञ्चवक्त्र: कराग्रै: स्वैर्दशभिश्चैव धारयन्।

अभयं प्रसादं शक्तिं शूलं खट्वाङ्गमीश्वर:।।

दक्षै: करैर्वामकैश्च भुजंग चाक्षसूत्रकम्।

डमरुकं नीलोत्पलं बीजपूरकमुक्तमम्।

5...संकट से रक्षा का शाबर हनुमान  मन्त्र

मन्त्रः-
“हनुमान हठीला लौंग की काट, बजरंग का टीला ! लावो सुपारी । सवा सौ मन का भोगरा, उठाए बड़ा पहलवान । आस कीलूँ – पास कीलूँ, कीलूँ अपनी काया । जागता मसान कीलूँ, बैठूँ जिसकी छाया । जो मुझ पर चोट-चपट करें, तू उस पर बगरंग ! सिला चला । ना चलावे, तो अञ्जनी मा की चीर फाड़ लंगोट करें, दूध पिया हराम करें । माता सीता की दूहाई, भगवान् राम की दुहाई । मेरे गुरु की दुहाई ।”
विधिः-
हनुमान् जी के प्रति समर्पण व श्रद्धा का भाव रखते हुए शुभ मंगलवार से उक्त मन्त्र का नित्य एक माला जप ९० दिन तक करे । पञ्चोपचारों से हनुमान् जी की पूजा करे । इससे मन्त्र में वर्णित कार्यों की सिद्धि होगी एवं शत्रुओं का नाश होगा तथा परिवार की संकटों से रक्षा होगी ।,,,

6....प्राण रक्षा मंत्र।

प्राण रक्षा मंत्र।
प्राणस्‍त्‍वं सर्वभूतानां योनिश्‍च सरितां पते।
तीर्थराज नमस्‍तेऽस्‍तु त्राहि मामच्‍युतप्रिय।।
(ना0 उतर0 57।2)

'सरिताओं के स्‍वामी तीर्थराज! आप सम्‍पूर्ण भूतों के प्राण और योनि है। आपको नमस्‍कार है। अच्‍युतप्रिय! मेरी रक्षा कीजिये।'

7.... हनुमान रक्षा-शाबर मन्त्र

“ॐ गर्जन्तां घोरन्तां, इतनी छिन कहाँ लगाई ? साँझ क वेला, लौंग-सुपारी-पान-फूल-इलायची-धूप-दीप-रोट॒लँगोट-फल-फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र ‌प्रताप-रक्षा-कारण वेगि चलो। लोहे की गदा कील, चं चं गटका चक कील, बावन भैरो कील, मरी कील, मसान कील, प्रेत-ब्रह्म-राक्षस कील, दानव कील, नाग कील, साढ़ बारह ताप कील, तिजारी कील, छल कील, छिद कील, डाकनी कील, साकनी कील, दुष्ट कील, मुष्ट कील, तन कील, काल-भैरो कील, मन्त्र  कील, कामरु देश के दोनों दरवाजा कील, बावन वीर कील, चौंसठ जोगिनी कील, मारते क हाथ कील, देखते क नयन कील, बोलते क जिह्वा कील, स्वर्ग कील, पाताल कील, पृथ्वी कील, तारा कील, कील बे कील, नहीं तो अञ्जनी माई की दोहाई फिरती रहे। जो करै वज्र की घात, उलटे वज्र उसी पै परै। छात फार के मरै। ॐ खं-खं-खं जं-जं-जं वं-वं-वं रं-रं-रं लं-लं-लं टं-टं-टं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः। अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। वायु-पुत्राय नमः। राम-दूताय नमः।”
विधिः- अत्यन्त लाभ-दायक अनुभूत मन्त्र है। १००० पाठ करने से सिद्ध होता है। अधिक कष्ट हो, तो हनुमानजी का फोटो टाँगकर, ध्यान लगाकर लाल फूल और गुग्गूल की आहुति दें। लाल लँगोट, फल, मिठाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १ सुपारी चढ़ा कर पाठ करें।
8...व्यापार बढ़ाने के लिए :शाबर मन्त्र
||भंवर वीर तू मेरा चेला, खोल दूकान कहा कर मेरा | उठै जो डंडी बिकै जो माल, भंवर वीर , सोखे नहिं जाये  ||

दुकान बंधन हटाने और व्यापार वृद्धि के लिए लाभ दायक प्रयोग है.
नवरात्री में करें. विशेष लाभ होगा.
अपने सामने काली उड़द या काली मिर्च के १००८ दाने रख लें.
प्रतिदिन १००८ बार जाप करें.दूकान में कर सकें तो वहां करें न कर सकें तो घर पर करें.
सामने गुग्गुल/ धुप जलाकर रखें.
पूर्णिमा के दिन अपनी दूकान पर जाएँ. साथ में वे दाने भी ले जाएँ.
धुप/अगरबत्ती जलाकर १०८ बार मन्त्र पढ़ें.
उन दानों को दूकान में बिखेर दें.
कुछ दाने अपनी कुसी/तिजोरी के पास भी डालें.
बचे दानों को काले कपडे की पोटली में बांधकर लटका दें.
गुरु कृपा से लाभ होगा.

9..रक्षा मन्त्र, शाबर

गृह शांति और रक्षा के लिए एक विधि
आपने देखा होगा की लगभग सभी दुकानों में लाल कपडे में नारियल बांधकर लटकाया जाता है, कई घरों में भी ऐसा किया जाता है. यह स्थान देवता की पूजा और गृह रक्षा के लिए किया जाता है.
नवरात्रि पर अपने घर मे गृह शांति और रक्षा के लिए एक विधि प्रस्तुत है जिसके द्वारा आप अपने घर पर पूजन करके नारियल बाँध सकते हैं.

आवश्यक सामग्री :-

लाल कपडा सवा मीटर
नारियल
सामान्य पूजन सामग्री
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यदि आर्थिक रूप से सक्षम हों तो इसके साथ रुद्राक्ष/ गोरोचन/केसर भी डाल सकते हैं.
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वस्त्र/आसन लाल रंग का हो तो पहन लें यदि न हो तो जो हो उसे पहन लें.
सबसे पहले शुद्ध होकर आसन पर बैठ जाएँ. हाथ में जल लेकर कहें " मै [अपना नाम ] अपने घर की रक्षा और शांति के लिए यह पूजन कर रहा हूँ मुझपर कृपा करें और मेरा मनोरथ सिद्ध करें."
इतना बोलकर हाथ में रखा जल जमीन पर छोड़ दें. इसे संकल्प कहते हैं.
नारियल पर मौली धागा [अपने हाथ से नापकर तीन हाथ लम्बा तोड़ लें.] लपेट लें.
लपेटते समय निम्नलिखित मंत्र का जाप करें." ॐ श्री विष्णवे नमः"
अब अपने सामने लाल कपडे पर नारियल रख दें. पूजन करें.
नारियल के सामने निम्नलिखित मंत्र का 1008 बार जाप करें ऐसा कम से कम तीन दिन तक करें. पूरी नवरात्रि कर सकें तो और भी बेहतर है.

"ॐ नमो आदेश गुरून को इश्वर वाचा अजरी बजरी बाडा बज्जरी मैं बज्जरी को बाँधा, दशो दुवार छवा और के ढालों तो पलट हनुमंत वीर उसी को मारे, पहली चौकी गणपति दूजी चौकी में भैरों, तीजी चौकी में हनुमंत,चौथी चौकी देत रक्षा करन को आवे श्री नरसिंह देव जी शब्द सांचा पिंड कांचा फुरो मंत्र इश्वरी वाचा"

अब इस नारियल को लाल कपडे में लपेट ले. आपका रक्षा नारियल तय्यार है. इसे आप दशहरा, दीपावली, पूर्णिमा, अमावस्या या अपनी सुविधानुसार किसी भी दिन घर की छत में हुक हो तो उसपर बांधकर लटका दें. यदि न हो तो पूजा स्थान में रख लें. नित्य पूजन के समय इसे भी अगरबत्ती दिखाएँ.
10/..सुख प्रसव मंत्र
यदि प्रसव में परेशानी जा रही हो तो यह टोटका भी अजमा कर देखें.

|| ॐ नमो वीर निचला गर्भ मुंच मुंच स्वाहा ||

इस मंत्र को तेल या गुड पर २१ बार पढ़ दें .
इस प्रकार अभिमंत्रित तेल या गुड को देवी माँ से सुख प्रसव की प्रार्थना करते हुए अगरबत्ती दिया दिखाएं.
अब इसे गर्भवती के कमरे में रख दें.
आसानी से प्रसव की संबावना बढ़ जाएगी

11....गोशाला [तबेला] की रक्षा का मंत्र
|| ॐ नमो भगवते त्रयम्बकाए !  पशुमयो ! पशुमयो ! चुलू चुलू ! मिली मिली ! भिदी भिदी !गोमानिनी ! चक्रिणी ! महातारे गोवंश रक्षिणी ह्रुं फट ||

मंत्र को कुमकुम या सिन्दूर से त्रिकोण बनाकर उसके अन्दर लिखकर गोशाला में टांगने से रक्षा होती है.

12.....शरीर बांधने का मंत्र
|| ॐ वज्र का सीकड़ ! वज्र का किवाड़ ! वज्र बंधे दसो द्वार ! वज्र का सीकड़ से पी बोल ! गहे दोष हाथ न लगे ! आगे वज्र किवाड़ भैरो बाबा ! पसारी चौसठ योगिनी रक्षा कारी ! सब दिशा रक्षक भूतनाथ !दुहाई इश्वर , महादेव, गौरा पारवती की ! दुहाई माता काली की ||

१००८ बार जपकर सिद्ध करें.
प्रयोग के समय ११ बार बोलकर अपने शरीर पर हाथ फेर दें.
 पूजन में बैठ रहे हों तो अपने चरों ओर घेरा बना लें . इससे सुरक्षा रहेगी .


१) सुरक्षा मंत्र :

उत्तर बांधों, दक्षिण बांधों, बांधों मरी मसानी,
नजर-गुजर देह बांधों रामदुहाई फेरों शब्द शाचा,
पिंड काचा फुरो मंत्र ईश्वरों बाचा।

२) शरीर रक्षा मंत्र :

ॐ नमों आदेश गुरू को आदेश जय हनुमान वीर महान करथों तोला प्रनाम,
भूत-प्रेत मरी-मशान भाग जाय तोर सुन के नाम, मोर शरीर के रक्षा करिबे
नही तो सिता भैया के सैया पर पग ला धरबे, मोर फूके मोर गुरू के फुके
गुरू कौन गौर महादेव के फूके जा रे शरीर बँधा जा।

उपरोक्त मंत्र को सात बार पढ़कर हथेली में फूंक मारकर सारे शरीर में फिरा लें ऐसा करने से साधक का शरीर बंध जाता है और साधक सुरक्षित हो जाता है।

विधि : मंत्र को ११ बार पढ़कर अपनेे चारों ओर एक घेरा बना ले इससे साधना में सभी विघ्नों से साधक की रक्षा होती है। इसके बाद किसी भी साधना का प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाता है। फिर कोई भी शाबर मंत्र साधना या प्रयोग कर सकता है। आइए अब कुछ अद्भुत शाबर मंत्रों के प्रयोग के बारे में जानते हैं।



सर्व सम्मोहन शाबर मंत्र (Sarva Sammohan Shabar Mantra) :

पद्धमिनी अन्जन मेरा नाम इस नगरी में पैसे के मौहो
सगरा ग्राम न्याय करता राजा मौहो फर्स बैठा पंच मौहो
पनघट की पनिहार मौहो इस नगरी में पैसे के छत्तीस पवना मौहो
कोऊ जो मार मार करता आवै ताहि नरसिंह वीर बाबा
पद के अंगूठा तरे घेर घेर लावे मेरी भक्ति गुरू की शक्ति
फुरो मंत्र इश्वरो वाचा। सत्य नाम आदेश गुरू का।

विधी : शनिवार तथा रविवार की रात में भगवान नरसिंह देव जी का पूजन करें सर्वप्रथम भगवान नरसिंह जी का चित्र स्थापित कर उन्हे आसन पर बैठाये तथा गूगल का धूप दीप जलाकर अस्ट गंध, चंदन, फूल,रोजी, कुकुम, अक्षत,पान सुपारी लौग आदि चढ़ाकर पूजन करें फिर उक्त शाबर मंत्र का ग्यारह सौ बार तप करें तत्पश्चात् गुगल, घी तथा शक्कर मिलाकर १०१ बार मंत्र पढ़ते हुये हवन करें। कपास के रूई से बत्ती बनाकर काजल,पारे। इस काजल को आखों में आजकर या मस्तक पर टीका लगाकर उक्त मंत्र का सात बार जप करें फिर जहाँ भी जाये जो भी देखे वह आपके सम्मोहन में खो जायेगे।



भूत प्रेत बाधा निवारक मंत्र (Bhoot Pret Badha Nivarak Mantra) :

ॐ नमो आदेश गुरू को आदेश हे हनुमंत वीर विरन के वीर
निहारे तरकश में नवलख तीर खन बाएँ खन दाहिने कबहुक
आगे होए धनी गुसाई सेबसा उनकी काया मगन होय इंद्रासन
दो लोक में बहार देखे मशान हमारी या ‘अमुक’ की देही छल छिद्र व्यापै
तो यति हनुमंत की आन मेरी भक्ति गुरू की शक्ति फुरों मंत्र इश्वरो वाचा।

विधी : हनुमान जी का चित्र रख कर पूर्ण विधी विधान से पूजन करें फिर उक्त मंत्र का ११०० बार जप करे धूप, दीप, नैवेध चढ़ाकर हनुमान जी से प्रार्थना करें कि मुझे आशिर्वाद प्रदान करें। फिर जिस व्यक्ति या बच्चे को ऊपरी बाधा या भूत प्रेत इत्यादि बाधा हो उसे उक्त मंत्र को ७ बार पढ़तेे हुए नीम के पत्र से झाड़ दे इसके प्रभाव से तुरंत ही रोगी स्वस्थ हो जाता है।



यादाश्त बढ़ाने का मंत्र (Yaadasht Badhane Ka Mantra) :

ॐ नमो भगवती सरस्वती परमेश्वरी वाक्य वादिनी
हे विद्या देही भगवती हंसवाहिनी बुद्धि में देही प्रज्ञा देही,
देही विद्या देही, देही परमेश्वरी सरस्वती स्वाहा।

विधी : यह मंत्र अत्यन्त तीव्र एवं प्रभावी है। बसंत पंचमी के दिन या किसी भी रविवार को सरस्वती माता के चित्र के समक्ष दूध से बना प्रसाद चढ़ाकर उक्त मंत्र का विधि पूर्वक १०८ बार जाप करें तथा खीर का भोजन करें तो यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। फिर जब भी पढ़ने बैठे इस मंत्र का ७ बार जप करें तो पढ़ा हुआ तुरंत याद हो जाता है और बुद्धि तीव्र हो जाती है।



रोजगार प्राप्ति हेतु मंत्र (Rojgaar Prapti Hetu Mantra) :

ॐ काली कंकाली भैरा समन्दर जिए पियाली चार वीर
भैरों चैरासी तब तू पूजो पान मिठाई अच बोलो काली की दुहाई।

विधी : उपरोक्त मंत्र को किसी भी शुभ मुहुर्त में महाकाली जी के चित्र के सामने तेल का दीपक जला कर पूर्व दिशा में मुह कर धूप दीप जलाकर शाबर मंत्र विधी से १०,००० बार मंत्र पढ़ सिद्ध कर लें। इस प्रयोग से अवश्य ही जातक को रोजगार प्राप्त होता है।



ॐ नमः शिव-। ॐ नमः कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा। इस शाबर मंत्र को आप

लक्ष्मी का पहला शाबर मंत्र
ओम नम: काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिये व्याली
चार बीर भैरों चौरासी बात तो पूजूं मानए मिठाई अब बोली कामी की दुहाई
सुबह स्नान के बाद लक्ष्मी पूजन के बाद पूर्व की ओर मुख करके बैठें।
फिर सुविधा के हिसाब से 7, 14, 21, 28, 35, 42 या 49 मंत्रों का जप करें।
ऐसा करने से आप कोई नया कारोबार जल्दी शुरु कर लेंगे।
लक्ष्मी का दूसरा शाबर मंत्र
ॐ श्री शुक्ले महाशुक्ले, महाशुक्ले कमलदल निवासे श्री महालक्ष्मी नमो नमः। लक्ष्मी माई सबकी सवाई, आओ चेतो करो भलाई, ना करो तो सात समुद्रों की दुहाई, ऋद्धि नाथ देवों नौ नाथ चैरासी सिद्धों की दुहाई। इस मंत्र को रोज़ एक माला जपें। जाप के बाद दुकान की चारों दिशाओं में नमस्कार करें। दुकान के पूजा घर में धूप दीप दिखाकर कारोबार की शुरुआत करें। देखते ही देखते दुकान चल निकलेगी।
लक्ष्मी का तीसरा शाबर मंत्र
ॐ क्रीं श्रीं चामुंडा सिंहवाहिनी कोई हस्ती भगवती रत्नमंडित सोनन की माल, उर पथ में आप बैठी हाथ सिद्ध वाचा, सिद्धि धन धान्य कुरु-कुरु स्वाहा। दीपावली की रात 12500 का जाप करें। बेरोज़गारों को नौकरी मिलेगी और नौकरी वालों को तरक्की।
लक्ष्मी का चौथा शाबर मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं ठं ठं ठं नमो भगवते, मम सर्वकार्याणि साधय, मां रक्ष रक्ष शीघ्रं मां धनिनं, कुरु कुरु फट् श्रीयं देहि, ममाप निवारय निवारय स्वाहा। ज्यादा रुपए पाने के लिए इस मंत्र का जाप करते हुये घर या मंदिर के शिवलिंग पर 7 बेलपत्र चढ़ायें। रोज़ एक माला का जाप करें।
लक्ष्मी का पांचवां शाबर मंत्र
इस मंत्र को ॐ श्रीं श्रीं श्रीं परमाम् सिद्धिं श्रीं श्रीं श्री सिद्ध करने के लिए दीपावली या फिर किसी भी शाम को प्रदोषकाल में
रोज़ 3 माले का जाप करें। इसके बाद अगर,तगर,केसर,लाल और सफेद चंदन,गुगुल,कपूर को घी में मिलाकर इसी मंत्र से 108 आहुति दें। 7 प्रदोषकाल में की गई पूजा से आपके जीवन में धन संपत्ति का अंबार लग जाएगा। वैदिक मंत्रों की सिद्धि में तो थोड़ा समय लगता है लेकिन शाबर मंत्रों का असर तुरंत दिखने लगता है। ऐसी मान्यता है कि शाबर मंत्रों की रचना गुरु गोरखनाथ और 84 सिद्धो ने की थी। यह मंत्र आम लोगों की भलाई के लिए बनाए गए थे। इन्हें सिद्ध करने में मुश्किलें भी कम थीं। लिहाजा यह मंत्र जल्दी लोकप्रिय हो गये। शाबर मंत्रों में लोक भाषा के शब्द ज़्यादा मिलते हैं।


।।ओम गुरुजी को आदेश गुरुजी को प्रणाम,
धरती माता धरती पिता, धरती धरे ना धीरबाजे श्रींगी बाजे तुरतुरि
आया गोरखनाथमीन का पुत् मुंज का छड़ा,
लोहे का कड़ा हमारी पीठ पीछे यति हनुमंत खड़ा,

शब्द सांचा पिंड काचास्फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।।
भूत प्रेत बाधा हरण मंत्र

ऊँ ऐं हीं श्रीं हीं हूं हैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी यक्षणी-पूतना-मारी-महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्ष्य महामारेश्रवर रूद्रावतार हुं फट स्वाहा।
यह मंत्र कठिन है तथा लंबा भी है परंतु इसका असर अचूक होता है| 108 बार इस मंत्र को जपते हुए जल को अभिमंत्रित करें तथा पीड़ित को कुछ जल पिलाने के बाद इस जल से छींटे मारें| समस्त ऊपरी बाधा से मुक्ति मिल जाती है|

तेल नीर, तेल पसार चौरासी सहस्र डाकिनीर छेल, एते लरेभार मुइ तेल पडियादेय अमुकार (नाम) अंगे अमुकार (नाम) भार आडदन शूले यक्ष्या-यक्षिणी, दैत्या-दैत्यानी, भूता-भूतिनी, दानव-दानिवी, नीशा चौरा शुचि-मुखा गारुड तलनम वार भाषइ, लाडि भोजाइ आमि पिशाचि अमुकार (नाम) अंगेया, काल जटार माथा खा ह्रीं फट स्वाहा। सिद्धि गुरुर चरण राडिर कालिकार आज्ञा।
सर्वप्रथम किसी शुभ मुहूर्त में उपर्युक्त मंत्र को 10 हजार बार जपकर सिद्ध कर लें| एक कटोरी में सरसो तेल लेकर 21 बार इस मंत्र का जाप करें तथा फूँक मारें| यह अभिमंत्रित तेल पीड़ित के ऊपर छिड़कें|

अपने सामने भूत-प्रेत बाधाग्रस्त व्यक्ति को बैठाएँ, हाथ में मोरपंख रखें| अब निम्नलिखित मंत्र को बुदबुदाएँ तथा मोरपंख से पीड़ित को झाड़ें –
बांधों भूत जहाँ तू उपजो छाड़ो गिर पर्वत चढ़ाई सर्ग दुहेली तू जमी

झिलमिलाही हुंकारों हनुमंत पचारई सभी जारि जारि भस्म करें जो चापें सींउ।

स्वयं तुलसीदास जी ने कहा है -

कलि बिलोकि जगहित हर गिरिजा। साबर मंत्रजाल जिन्ह सिरिजा।।

अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाव महेस प्रतापू।।

        ये मन्त्र अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं, परन्तु तान्त्रिकों द्वारा लम्बे समय से इन्हें गुप्त रखा गया है। ये मन्त्र सहज ही सिद्ध हो जाते हैं, परन्तु सिद्धि के उपरान्त जनकल्याण हेतु ही इनका प्रयोग किया जाना चाहिये।
कुछ लोगों का मानना है कि शंबर नामक असुर ने जिस मायाविद्या की रचना की थी, शाबर मंत्र उसी की शाखा है। वस्तुतः शाबर मंत्र अभिचार कर्मों (मारण, मोहन, उच्चाटन आदि) से बचाव के अमोघ उपचार के रूप में विख्यात हैं। इसके अलावा अन्य रोगों से भी इन     मन्त्रों द्वारा  मुक्ति पाई जा सकती है।
शाबर मंत्र का उच्चारण करते हुए जाप किया जाता है। इस कारण ये ध्वनि प्रधान माने गए हैं। शाबर मंत्र पूर्णतया लाभ प्रदान करते हैं, इसमें संशय नहीं है। इनमें देव, गुरु, भैरव, गोरखनाथ, लोना चमारी आदि की दुहाई देने का विधान है। ये शक्तियां साधकों को साधनोपरांत स्वयं की प्रत्यक्ष अनुभूति भी कराती हैं।
इन चमत्कारिक शाबर मन्त्रों  के संसार में पवनपुत्र हनुमान अत्यन्त महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। शताधिक शाबर मन्त्रों के प्रधान देवता स्वयं हनुमान ही हैं, जबकि अन्य मन्त्रों में इनके नाम का स्मरण किया गया है। हनुमान जी से संबंधित मन्त्रें द्वारा तंत्र की समस्त क्रियाएँ सम्पादित की जा सकती हैं। शाबर मन्त्रों को सिद्ध करने के बाद ही प्रयोग में लाया जाना चाहिए। इससे संबंधित कुछ प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं -

(१) इन मन्त्रों की सिद्धि हेतु अनुष्ठान का प्रारंभ होली, दीपावली, अमावस्या, ग्रहण, नागपञ्चमी, नवरात्रि आदि को ही करना चाहिए।

(२) हनुमान जी से संबंधित शाबर मन्त्रों की सिद्धि हेतु मंगलवार तथा शनिवार के दिन प्रशस्त माने गए हैं।

(३) पञ्चमुखी हनुमान जी की मूर्त्ति का ही प्रयोग शाबर मन्त्रों के सन्दर्भ में करना उत्तम रहता है। हनुमान जी के पञ्चमुखों में वानर, व्याघ्र, वराह, अश्व तथा गरुड़ परिगणित हैं, जिनके द्वारा मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन तथा पुष्टिकरण कर्म किए जाते हैं।

(४) योग्य गुरू के अभाव में भगवान श्रीराम को ही गुरू मान कर हनुमान जी के शाबर मन्त्रों की सिद्धि की जा सकती है।

(५) सिद्धि हेतु शाबर मन्त्रों का 1008 संख्या में जप कर इतनी ही संख्या से हवन भी करना चाहिए।

(६) यदि मन्त्रों की संख्या निर्धारित हो तो उतने ही संख्या में जप करें।

(७) सिद्धि के उपरान्त भी प्रत्येक अमावस्या तथा ग्रहण काल में इन मन्त्रों की 11 माला का जप अवश्य करें। ताकि मन्त्र की चैतन्यता बनी रहे।

केसरीनंदन हनुमानजी से संबद्ध कुछ शाबर मंत्र जनहितार्थ दिए जा रहे हैं। साधक इनका लाभ उठा सकते हैं।

पीलिया रोग निवारण का मंत्र
ॐ वीर वैताल असराल नारसिंह खादी तुर्षादी, पीलिया कूं भिदाती, कारै, जारै पीलिया रहै न नेक निशान जो कहीं रह जाए तो हनुमंत की आन, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र इश्वरो वाचा।

उपरोक्त मंत्र को सिद्ध करने के बाद पीलिया रोग दूर करने हेतु कांसे की एक कटोरी में तिल का तेल लें। इस कटोरी को रोगी के सिर पर रखकर मंत्र जाप करते हुए कुशा (डाभ) से तेल को चलाएं। मंत्र के प्रभाव से तेल जब पीला हो जाए तब कटोरी नीचे रखें। ऐसा तीन दिन करने से रोग दूर हो जाता है।

अर्शरोग दूर करने का मंत्र
ॐ काकाकर्ता क्रोरी करता, ॐ करता से होय व रसना, दशहूं स प्रकटे खूनी बादी बवासीर न होए, मंत्र जान के न बताए, द्वादश ब्रह्म हत्या का पाप होय, शब्द सांचा पिण्ड काचा तो हनुमान का मंत्र सांचा, फुरो मंत्र इश्वरो वाचा।

      उपरोक्त मंत्र एक लाख जाप से सिद्ध होता है। जो व्यक्ति इसे सिद्ध कर लेता है, उसे अर्शरोग नहीं होता। रात्रि के रखे जल को 21 बार अभिमंत्रित कर शौच को जाएं तथा शौच के बाद अभिमंत्रित जल से गुदा प्रक्षालन से अर्श रोग दूर होता है।

कान दर्द दूर करने का मंत्र
बनरा गांठि बनरी तो ढांट हनुमान अंकटा, बिलारी बाधिनी थनैला कर्ण मूल जाई श्री रामचंद्रवानी जलपथ होई।

कान-दर्द हो तो उपरोक्त मंत्र से झाड़ें। हाथ में भभूति लेकर सात बार मंत्र का उच्चारण करके भभूति को कान से छुआकर नीचे डाल दें।

नेत्र रोग दूर करने का मंत्र
ॐ झलमल जहर भरी तलाई, अस्ताचल पर्वत से आई, जहां बैठा हनुमंता, जाई फूटै न पाकै करै, न पीड़ा जाती, हनुमंत हरे पीड़ा मेरी। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा सत्य नाम आदेश गुरु को।

ग्यारह बार मंत्रोच्चारण कर नीम की डाली से यह क्रिया तीन दिन तक नियमित करने से नेत्र रोग दूर होता है।

ॐ नमो वन में ब्याई बानरी जहां-जहां हनुमान अंखिया पीर कषवा रो गेहिया थने लाई चारिऊ जाए भस्मंतन गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।

यह मंत्र 7 बार उच्चारण करने से रोग ठीक हो जाता है।

सिरदर्द दूर करने का मंत्र
लंका में बैठ के माथ हिलावै हनुमन्त। सों देखि राक्षसगण पराय दूरन्त।।
बैठी सीता देवी अशोक वन में। देखि हनुमान को आनन्द भई मन में।।
गई उस विषाद देवी स्थिर दर्शाय। अमुक के सिर व्यथा पराय।।
अमुक के नहीं कछु पीर नहीं कछु भार। आदेश का मारण्या हरि दासी चण्डी की दोहाई।।

सिरदर्द से पीडि़त व्यक्ति को दक्षिण दिशा में मुंह करके बैठाएं। फिर उसके सिर को दाएं हाथ से पकड़कर उपरोक्त मंत्र सात बार पढ़कर सिर पर फूंक मारें। ऐसा सात बार करने से सिरदर्द से छुटकारा मिल जाता है।

आधीसीसी दूर करने का मंत्र
(1)ॐ नमो वन में ब्याई वानरी, उछल वृक्ष पै जाय। कूद-कूद शाखान पे कच्चे वन फल खाय।।
आधा तोड़े आधा फोड़े आधा देय गिराय। हंकारत हनुमान्जी आधा सीसी जाय।।

(2) वन में ब्याई अंजनी कच्चे वन फल खाय।
हांक मरी हनुमन्त ने इस पिण्ड से आधासीसी उतर जाय।।

    उपरोक्त दोनों मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र से झाड़ने पर आधासीसी का दर्द दूर होता है।

बिच्छू का विष उतारने का मंत्र
पर्वत ऊपर सुरही गाई। कारी गाय की चमरी पूछी। ते करे गोबरे बिछी बिआई। बिछी तौरकर अठारह जाति। 6 कारी 6 पीअरी 6 भूमाधारी 6 रत्न पवारी। 6 कुं हुं कुं हुं छारि। उतरू बिछी हाड हाड पोर पोर ते। कस मारे लील क्रंठ गरमोर। महादेव को दुहाई, गौरा पार्वती को दुहाई। अनीत टेहरी शडार बन छाई, उतरहिं बीछी हनुमंत की आज्ञा दुहाई हनुमत की।

 प्रयोग करने से पहले मंत्र को होली, दीपावली अथवा सूर्य, चंद्र ग्रहण काल में मंत्र सवा लाख जपने से सिद्ध हो जाता है। बिच्छू के काटे को बंध बांधकर मोर पंख या नीम की डाली से झाड़ा दें।

दांत का कीड़ा झाड़ने का मंत्र
ॐ नमो आदेश गुरु को वन में ब्याई अंजनी जिन जाया हनुमन्त, कीड़ा मकड़ा माकड़ा ए तीनों भस्मन्त, गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।

दीपावली की रात्रि से जाप शुरू कर एक लाख बार जपें तो मंत्र सिद्ध हो जाएगा। जब मंत्र सिद्ध हो जाए तब नीम की डाली से झाड़ने पर दांत-दर्द शीघ्र ठीक हो जाता है। मंत्रोच्चारण के समय कटेरी के बीजों का धुआं दें और बांस या कागज की नली (फूंकनी) से फूंक मारें।

भूत-प्रेत दूर करने का मंत्र
बांधो भूत जहां तु उपजो छाडो, गिरे पर्वत चढ़ाई सर्ग दुहेली तुजिभ झिलमिलाहि हुंकारे हनुमंत पचारइ भीमा जारि-जारि जारि भस्म करे जों चापैं सिंऊ।

108 बार उपरोक्त मन्त्र का जप कर लोबान का धुंआ दें।

सर्प विष उतारने का मंत्र
जेहि समय गए राम वन माहीं। तिनका तहां कष्ट अति होंही।।
सिय हरण अरु बाली नाशा। पुनि लागी लषन नाग फांसा।।
बिकल हरि देख नाग फांसा। स्मरण करहिं गरुड निज दासा।।
विनता नन्दन बसहिं पहारा। पहुंचे स्मरण ते ही लंका पल पारा।।
रहे लखन बांधि जितने सब नागा। सो गरुड़ देख तुरत सब भागा।।
अमुक अंग विष निर्विष होइ जाई। आदेश श्रीरामचन्द्र की दुहाई।।
आज्ञा विनतानन्दन की आन।

जब रोगी मरणासन्न हो, तब उक्त राम-सार मंत्र का सात या बारह बार उच्चारण कर झाड़ा देने से रोगी को चेतना आती है। मंत्र में ‘अमुक’ के स्थान पर रोगी का नाम लें।

अण्डवृद्धि रोग तथा सर्प निवारण का मंत्र
ॐ नमो आदेश गुरु को जैसे को लेहु रामचन्द्र कबूत सो सई करहु राध बिनु कबूत पवन सूत हनुमन्त धाऊ हरहर रावन कूट मिरावन श्रवइ अण्ड खेतहि श्रवइ अण्ड अण्ड विहण्ड खेतहि श्रवइ वाँज गर्भहि श्रवइ स्त्री पीलहि श्रवइ शापहर हर जम्बीर हर जम्बीर हर हर हर।

उक्त मंत्र बोलते हुए फूले हुए अंडकोष को हाथ से सहलाने तथा अभिमंत्रित जल रोगी को पिलाने से रोग दूर होता है। इसी मंत्र से अभिमंत्रित मिट्टी का ढेला यदि सांप के बिल पर रखा जाए तो सांप स्वयं ही बाहर निकल आता है।

चूहे भगाने का मंत्र
पीत पीताम्बर मूशा गांधी। ले जाइहु तु हनुवन्त बांधी।
ए हनुमन्त लंका के राऊ। एहि कोणे पैसेहु एहि कोणे जाऊ।।

स्नान करके हल्दी की पांच गांठें व कुछ चावल अभिमंत्रित कर घर या खेत में डालने से चूहे भाग जाते हैं।

देह रक्षा का मंत्र
ॐ नमः वज्र का कोठा जिसमें पिण्ड हमारा पैठा, ईश्वर कुञ्जी ब्रह्मा का ताला मेरे आठों धाम का यती हनुमंत रखवाला।

यह मंत्र 1008 बार जपने से सिद्ध हो जाता है। नित्य एक माला (108 बार) जपने से अभिचार प्रभावहीन होता है।

उक्त मंत्र सिद्ध करने के बाद राख से रोगी स्त्री से झड़वाएं तथा स्वयं मंत्रोच्चारण करें।
स्त्रियों की स्तन-पीड़ा निवारण का मंत्र
ॐ वन में जाई अंजनी जिन जाया हनुमन्त। सज्जा खधा ढांकिया सब हो गया भस्मन्त।।

कांख में होनेवाले फोड़े को झाड़ने का मंत्र
ॐ नमो कखलाई भरी तलाई जहाँ बैठा हनुमन्ता आई। पके न फूटै चले न पीड़ा रक्षा करे हनुमन्त वीर, दुहाई गोरखनाथ की शब्द सांचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा। सत्य नाम आदेश गुरु को।

उक्त मंत्र 21 बार पढ़कर झाड़ने व जमीन की मिट्टी लगाने से कांख का फोड़ा ठीक हो जाता है।

धरन बैठाने का मन्त्र
ॐ नमो नाड़ी नाड़ी नौ सौ नाड़ी बहत्तर कोठा चले अगाड़ी डिगे न कोठा चले न नाड़ी। रक्षा करे जती हनुमन्त की आन मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।

इसके निवारण के लिए सूत के धागे में नौ गांठें लगाकर प्रत्येक गांठ पर नौ बार उपरोक्त मंत्र फूंकें। फिर उसे छल्ले की तरह बनाकर पीडि़त व्यक्ति की नाभी पर रखें और नौ बार पुनः फूंक मारें।

ऊपरी हवा शान्ति
ॐ नमो आदेश गुरू का। काली चिड़ी चिड़-चिड़ करे। धौला आवे वाते आवे हरे। यती हनुमान हाँक मारे। मथवाई और बाई जाये भगाई। हवा हरे। गुरू की शक्ति मेरी भक्ति। फुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा।

इस मन्त्र का उच्चारण 21 बार कर, मोर पंख से झाड़ा लगाने से ऊपरी दोष की शान्ति होती है।

नकसीर
ॐ नमो आदेश गुरू का। सार सार महासागरे बाँधूं। सात बार फिर बाँधूं। सात बार फिर बाँधूं। तीन बार लोहे की तार बाँधूं। सार बाँधे हनुमन्त वीर। पाके न फूटे। तुरन्त सेखे। आदेश आदेश आदेश।

राख लेकर उपरोक्त मन्त्र 11 बार पढ़ें और नाक का झाड़ा करें।

प्राण रक्षा तथा आरोग्य लाभ हेतु

यदि व्यक्ति बहुत बीमार, दवा न लगे और प्राणों पर संकट हो तो निम्नलिखित मन्त्र का प्रयोग चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न करता है -

तू है वीर बड़ा हनुमान। लाल लंगोटी मुख में पान। एैर भगावै।
वैर भगावै। आमुक में शक्ति जगावै। रहे इसकी काया दुर्बल।
तो माता अ×जनी की आन। दुहाई गौरा पार्वती की। दुहाई राम की।
दुहाई सीता की। लै इसके पिण्ड की खबर। न रहे इसमें कोई कसर।

इस मन्त्र का 11 बार जाप करें। प्रत्येक जप के बाद रोगी पर फूंक मारें तथा हनुमान जी की मूर्ति के चरण से सिंदूर लेकर तिलक करें। यह मन्त्र महामृत्युञ्जय मन्त्र के समान ही प्रभाव उत्पन्न करता है।

वशीकरण
माता अञ्जनी का हनुमान। मैं मनाऊं। तूँ कहना मान। पूजा दे, सिन्दूर चढ़ाऊँ। अमुक रिझाऊँ। अमुक को पाऊं। यह टीका तेरी शान का। वह आवे, मैं जब लगाऊं। नहीं आवे तो राजा राम की दुहाई। मेरा काम कर। नहीं आवे तो अञ्जनी की सेज पड़।

रक्त चन्दन के तिलक को 11 बार अभिमंत्रित कर लगाएँ। अधिकारी वश में होंगे।

माँ कामकलाकाली का दुर्लभ गद्य सहस्त्रनाम स्तोत्र अर्थ सहित ।

आज सप्तम नवरात्रि पर मां कालरात्रि का श्रीमद् आदिनाथ द्वारा रचित बहुत ही दुर्लभ माँ कामकलाकाली के सहस्त्र नाम का मंत्ररूप गद्य प्रस्तुत है । इसका प्रभाव यह है कि इस भौतिक संसार में ऐसा कोई कार्य नही है जो पूर्ण न हो सकता हो । इसके अर्थ को समझते हुए बहुत ही विनीत भाव से माँ का ध्यान कर इसका पाठ करे, तो मनोवांछित प्रत्येक फल संभव है । इसके साथ में अर्थ भी स्पष्ट किया हुआ है ताकि आपको अपूर्णता का अहसास न हो ।

महाकाल ने कहा- हे महेशानि! अब में संजीवन के रुप में स्थित एवं महापाप नाशक गद्य-सहस्त्रनाम को बताऊंगा जिसे पढने वाला व्यक्ति हे प्रिये! प्राक्तन समस्त जन्मो को सफल बना लेता है तथा नही पढने वाले का समस्त जन्मकर्म विफल रहता है, उस पाठ को में तुमसे कह रहा हूँ ।

पाठ-
ॐ फ्रें जय जय कामकलाकालि कपालिनि सिद्धि-करालि, सिद्धि-विकरालि, महा-बलिनि, त्रिशुलिनि, नर-मुंड-मालिनि, शव-वाहिनि, कात्यायिनि, महाsटटाहासिनि, सृष्टि-स्थिति-प्रलय कारिणि, दिति-दनुज-मारिणि, श्मशान-चारिणि । महाघोररावे अध्यासित-दावे, अपरिमित-बल-प्रभावे । भैरवी-योगिनि-डाकिनी सह-वासिनि जगद्धासिनि स्व-पद-प्रकाशिनि । पापौघ-हारिणि आपदुद्धारिणि अप-मृत्यू-वारिणि । बृहन्मद्य-मानोदरि, सकल-सिद्धिकरि चतुर्दश-भुवनेश्वरि । गुनातीत-परम-सदाशिव मोहिनि अपवर्ग-रस-दोहिनि, रक्तार्णव-लोहिनि । अष्ट-नागराज भूषित-भुजदण्डे आकृष्ट-कोदण्डे परम-प्रचण्डे । मनोवागगोचरे मुखकोटि मंत्रमय कलेवरे ।महाभीषण-तरे प्रचल-जटाभार-भास्वरे सजल-जलद-मेदुरे जन्म-मृत्यु-पाशभिदुरे सकल-दैवत-मय-सिंहासनाधिरूढ़े । गुह्याति-गुह्य-परापर-शक्तितत्तरूढ़े वांगमयी-कृतमूढ़े । प्रकृत्य-पर-शिव-निर्वाण-साक्षिणि, त्रिलोकीरक्षिणि दैत्यदानव भक्षिणि । विकट-दीर्घ-दंष्ट्र-संचूर्णित-कोटिब्रह्मकपाले, चन्द्र-खण्डांकितभाले देहप्रभाजित-मेघजाले । नवपंचचक्र-नयिनि महाभीमषोडश-शयिनि, सकल कुलाकुल चक्र-प्रवर्तिनि, निखिल-रिपुदल-कर्त्तिनि महामारी-भय-निवर्त्तिनि, लेलिहान-रसना करालिनि त्रिलोकीपालिनि त्रय-स्त्रिंशत्कोटि-शस्त्रास्त्रशालिनि । प्रज्वल-प्रज्वलन-लोचने, भवभयमोचने निखिलागमादेशित रोचने । प्रपंचातीत-निष्कल-तुरीयाकारे, अखण्डाsनंदाधारे निगमागमसारे । महाखेचरीसिद्धिविधायिनि निजपदप्रदायिनि घोराट्टाहास संत्रासित त्रिभुवने चरणकमलद्वयविन्यास खर्वी-कृतावने विहितभक्तावने ।

अर्थ:- ॐ फ्रें जय जय कामकलाकालि, अपने हाथ में कपाल धारण करने वाली, सिद्धिकराली, सिद्धिविकराली, महाबलशाली, त्रिशुलिनी, नरमुंडो की माला धारण करने वाली, शव पर आरूढ़, कत गोत्र में प्रकटी, महा अट्टहास करने वाली, सृष्टि-स्थिति-प्रलय करने वाली, दैत्यों और दानवों का विध्वंस करने वाली, श्मशान में विचरण करने वाली, अपने तेजोमय रुप से महाघोर शब्द उत्पन्न करने वाली, दावाग्नि का अहसास कराने वाली, अपरिमित बल और अपरिमित प्रभाव वाली, भैरवी, योगिनी और डाकिनी के साथ रहने वाली विश्व को प्रसन्न रखने वाली, अपने पद को प्रकाशित करने वाली, पाप-समूह को नष्ट करने वाली, आपत्ति से उद्धार करने वाली, अपमृत्यु को दूर करने वाली, विस्तारित एवं मद से पूर्ण उदर वाली, समस्त सिद्धि प्रदान करने वाली, चौदह भुवनो की स्वामिनी, गुनातीत भगवान परम शिव को आकर्षित करने वाली, मुक्तिरस का दोहन करने वाली, खून के रंग के समान लाल वर्ण वाली, अपनी भुजाओ में आठ नागराज धारण करने वाली, धनुष खीचकर तैयार रखने वाली, परम प्रचण्ड मन और वाणी की अगोचर, करोडो यज्ञ एवं मंत्रमय देह वाली, महाभीषण, चलती हुई जटा के भार से काले बादलों के समान प्रतीत होती काली, जीवन-मृत्यु के पाश से विमुक्त करने वाली, सभी देवों से युक्त सिंहासन पर विराजित, गुह्य-अतिगुह्य, पर-अपर शक्ति तत्व वाली, मुर्ख को वक्ता बना देने वाली, प्रकृति एवं अपर शिव के निर्वाण की साक्षी, त्रेलोक्य की रक्षक, दैत्य और दानवों का भक्षण करने वाली, विकट एवं लम्बे दांतों से करोडो ब्रह्मा के कपालों को चूर्ण कर देने वाली, भाल पर चंद्रखंड से सुशोभित, शरीर की कान्ति से बादलों की चमक को पराजित कर देने वाली, चौदह चक्र, नव चक्र और पांच चक्रों की अधिष्ठात्री, षोडश मातृकाओं की आधारभूता, समस्त कुल-अकुल चक्र का प्रारंभ करने वाली, समस्त शत्रुओं की नाशक, महामारी के डर को हटाने वाली, लपलपाती हुई जीभ के कारण भयंकर, त्रिजगत की पालनहारा, तैंतीस करोड़ अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित, जलती अग्नि जैसे नेत्रों वाली, भवभय से मुक्त करने वाली, समस्त आगमों में रूचि रखने वाली, प्रपंच से परे निष्कल तुरीय आकार वाली, अखण्ड आनंद की आधार, निगम और आगम की सार, महाखेचरी की सिद्धि प्रदान करने वाली, अपना पद प्रदान करने वाली, महामायाविनी, घोर अट्टाहास से त्रिभुवन को भयभीत कर देने वाली, दोनों चरणों के न्यास से पृथ्वी को छोटी कर देने वाली, अपने भक्तो की रक्षा करने वाली ( आपको नमस्कार है ) ।
ॐ क्लीं क्रों स्फ्रों हूं ह्रीं छ्रीं स्त्रीं फ्रें भगवति प्रसीद प्रसीद जय जय जीव जीव ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हंस हंस नृत्य नृत्य क छ भगमालिनि भगप्रिये भगातुरे भगांकिते भगरूपिणि भगप्रदे भग-लिंग-द्राविणि । संहारभैरवसुरतरसलोलुपे व्योमकेशि पिंगकेशि महाशंखसमाकुले खर्परविहस्तहस्ते रक्तार्णवद्वीपप्रिये मदनोन्मादिनि ।

शुष्कनरकपालमालाभरणे विद्युतकोटिसमप्रभे नरमांस खण्ड कवलिनि । वमदग्निमुखि फेरु-कोटि-परिवृते कर-तालिका-त्रासित-त्रिविष्टपे । नृत्य-प्रसारित-पादाघात परिवर्तित-भूवलये । पद-भाराव-नम्रीकृत-कमठ-शेषा-भोगे । कुरुकुल्ले कुंच-तुण्डि रक्तमुखि यमघंटे चच्चिर्के दैत्यासुर दैत्य राक्षस-दानव-कुष्माण्ड-प्रेत-भूत-डाकिनी-विनायक-स्कन्द घोणक क्षेत्रपाल-पिशाच-ब्रह्मराक्षस-वेताल-गुह्यक-सर्प-नाग ग्रह-नक्षत्र उत्पात चौराग्नि स्वापद युद्ध वज्रोपलाश निवर्ष विद्युन्मेघ विषोप-विषकपट कृत्या अभिचार द्वेष वशीकरण उच्चाटन उन्माद अपस्मार भूतप्रेत पिशाचवेशन नदी समुद्र आवर्त कान्तार्घोर अन्धकार महामारी बालग्रह हिंस्त्र सर्वस्वापहारि माया विद्युत् दस्यु वंचक दिवाचर रात्रिचर संध्याचर श्रृन्गि नखि दंष्ट्री विद्युत उल्का अरण्यदर प्रान्तरादि नानाविध महोपद्रव भंजनि, सर्वमंत्रतंत्रयंत्र कुप्रयोग प्रमद्दिनि षडाम्नाय समय विद्या प्रकाशिनि श्मशाना ध्यासिनि । निजबल प्रभाव पराक्रम गुण वशीकृत कोटि ब्रह्माण्डवर्ति भूतसंघे । विराड़रुपिणि सर्वदेव महेश्वरि सर्वजन मनोरंजनि सर्वपाप प्रणाशिनि अध्यात्मिकाधि दैविक आधिभौतिक आदि-विविध ह्रदयादि-निर्ददलिनी कैवल्य निर्वाण बलिनि दक्षिणकालि भद्रकालि चण्डकालि कामकलाकालि कौलाचार व्रतिनि कौलाचार कूजिनि कुलधर्म साधनि जगतकारणकारिणि महारौद्रि रौद्रवतारे अबीजे नानाबीजे जगदबीजे कालेश्वरि कालातीते त्रिकालस्थायिनि महाभैरव भैरवगृहिणि जननि जन-जनन-निवर्तिनि प्रलय-अनल-ज्वाला-ज्वालजिह्वे विखर्वोरु फेरुपोत लालिनि मृत्युंजय ह्रदयानंदकरि विलोल व्याल कुण्डल उलूक पक्षच्छत्र महाडामरि नियुक्त-वक्त्र-बाहुचरणे सर्वभूत दमनि नीलांजन समप्रभे योगीन्द्रह्रदयाम्बुजासन स्थित नीलकंठ-देहार्द्धहारिणि षोडश-कलांत-वासिनि हकारार्द्धचारिणि काल-संकर्षिणि कपालहस्ते मद-घूर्णित-लोचने निर्वाण दीक्षा-प्रसादप्रदे निन्दाsनंद-अधिकारिणि मातृगण-मध्यचारिणि त्रयस्त्रि-शत-कोटि-त्रिदश-तेजोमय-विग्रहे प्रलयाग्निरोचिनि विश्व कर्त्रि विश्वाराध्ये विश्व जननि विश्व-संहारिणि विश्व-व्यापिके विश्वेश्वरि निरुपमे निर्विकारे निरंजने निरीहे निस्तरंगे निराकारे परमेश्वरि परमानन्दे परात्परे प्रकृति-पुरुषात्मिके प्रत्ययगोचरे प्रमाणभूते प्रणवस्वरुपे संसारसारे सच्चिदानंदे सनातनि सकले सकल कलातीते सामरस्य-समयिनि केवले कैवल्यरुपे कल्पनातिगे काललोपिनि कामरहिते कामकलाकालि भगवति ।

अर्थ:- ॐ क्लीं क्रों स्फ्रों हूं ह्रीं छ्रीं स्त्रीं फ्रें भगवति प्रसीद प्रसीद जय जय जीव जीव ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हस हस नृत्य नृत्य क छ भगमालिनी भगप्रिये भगातुरे भगांकिते भगरूपिणी भगप्रदे भग और लिंग को द्रवित करने वाली, संहार भैरव के साथ सूरत करने से उत्पन्न आनंद की लोलुप, शिव की भार्या, पिंगकेश वाली, नरकपाल से आवृता, हाथ में खप्पर लिए हुए, रक्त समुद्र और रक्त द्वीप के प्रति आसक्त, कामदेव को उन्मत्त करने वाली, सूखे हुए नरकपालो के आभूषण धारण करने वाली, करोडो बिजली के समान चमक वाली, मनुष्य के मांस को ग्रहण करने वाली, मुख से अग्नि का वमन करने वाली, करोडों गिदडियो से घिरी हुई, हाथ की ताली मात्र से स्वर्ग को कंपा देने वाली, नृत्य के लिए फैलाये गये पैर के आघात से पृथ्वी को मोड़ देने वाली, पैर के भार से कच्छप और शेषनाग के फन को झुका देने वाली, कुरुकुल्ले जैसे संकुचित मुख वाली, रक्त से भरे हुए मुख वाली, यमघंटा चच्चिर्का दैत्य असुर दैत्यराक्षस दानव कुष्माण्ड प्रेत भूत डाकिनी विनायक स्कन्द घोणक क्षेत्रपाल पिशाच ब्रह्मराक्षस बेताल, गुह्यक सर्प नाग ग्रह-नक्षत्र के उत्पात चोर अग्नि जंतु से युद्ध वज्र उपल अशनि की वर्षा विद्युत् मेघ विष उपविश कपटपन अभिचार द्वेष वशीकरण उच्चाटन उन्माद मिर्गी भूत प्रेत पिशाच का आवेश नद-नदी समुद्र के चारों ओर के घने जंगल अंधकार महामारी बालग्रह हिंसक सर्वस्व का अपहरण करने वाले मायावी डाकू ठग लुटेरे चोर सन्ध्याचर सींग नख दांत वाले जीव, विद्युत उल्का अरण्य उसके समीप का स्थान आदि अनेक प्रकार के उपद्रव का नाश करने वाली, समस्त मंत्र-तन्त्र-यंत्र के दुष्प्रयोग को नष्ट करने वाली, समस्त आम्नाय के सिद्धान्त और ज्ञान का प्रकाश करने वाली, श्मशान-निवासिनी, अपने बल, प्रभाव, पराक्रम और गुणों के कारण असंख्य ब्रह्माण्डो में रहने वाले प्राणियों को वश में करने वाली, विराट-स्वरूपा, समस्त देवों की अधिश्वरी, समस्त जनों का मनोरंजन करने वाली, सभी के पापों को नष्ट करने वाली, आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिवैदिक आदि द्वारा विविध ह्रदय की पीड़ा का नाश करने वाली, कैवल्य निर्वाण प्रदान करने वाली दक्षिण काली, भद्र काली, चंड्काली, कामकलाकाली, कौलाचार व्रत करने वाली, कौलाचार का प्रचार करने वाली, कुलधर्म की साधना करने वाली, जगत के कारण की कारण, महारौद्री, स्वयम्भू, नानाबीज, जगत की कारणभूता, काल की स्वामिनी, काल से परे, त्रिकाल-स्थापिनी, महाभयंकर, भैरव की भार्या, जननी, मनुष्य के जन्मबन्धन को हरने वाली, प्रलय-अग्नि की ज्वाला के समूह के समान जिह्वा वाली, छोटी जंघाओ वाली, सियार के बच्चे का पालन करने वाली, महादेव मृत्युंजय के ह्रदय को प्रसन्न करने वाली, चंचल सर्प का कुण्डल और उल्लू के पंखों का छत्र धारण करने से महाभयंकर, दश हजार करोड़ मुख, बाहु और चरनों वाली, समस्त भूतों का दमन करने वाली, नीली स्याही के समान प्रभा वाली, योगियों के ह्रदय-कमल-रूपी आसन पर स्थित नीलकंठ भगवान् की अर्धदेह को धारण करने वाली, सोलह कलाओ के अंत अर्थात् अमृताकला में निवास करने वाली, 'ह' कार के अर्घ यानि विसर्ग में संचरण करने वाली, काल-संकर्षिणी, हाथ में कपाल धारण करने वाली, मद से मस्त नेत्रों वाली, निर्वाण दीक्षा रूपी प्रसाद प्रदान करने वाली, निंदा और आनंद दोनों की अधिकारिणी, मातृसमूह के मध्य में विचरण करने वाली, तैतीस करोड़ देवताओं के तेज की देह वाली, प्रलयकाल में उत्पन्न अग्नि के समान कान्ति वाली, सृष्टि का संहार करने वाली, विश्व द्वारा पूजिता, सृष्टि की रचना करने वाली, सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त, विश्व की ईश्वरी, उपमा-रहित विकारशून्य कलंकवर्जित इच्छारहित निस्तरंग निराकार परमेश्वरी परम आनंदस्वरूपा परापरा प्रकृति-स्वरूपा ध्यान से जान जाने वाली, प्रमाण स्वरूपा, ओंकार स्वरूपा, संसार की तत्वभूत सत-चित-आनन्दस्वरूपा, सनातनी, कलायुक्ता, सम्पूर्ण कलाओ से परे, सामरस्य सिद्धान्त वाली, केवल, केवल्यरुपा, कल्पनातीत काल का लोप करने वाली, कामरहित माँ कामकलाकाली भगवती ( आपको नमस्कार है ) ।

ॐ ख्फ्रें हसौ: सौ: श्रीं ऐं ह्रौं क्रों स्फ्रों सर्वसिद्धिं देहि-देहि मनोरथान् पूरय-पूरय मुक्तिं नियोजय-नियोजय भवपाशं समुन्मूलय-समुन्मूलय जन्ममृत्यु तारय-तारय परविद्यां प्रकाशय-प्रकाशय अपवर्गं निर्माहि-निर्माहि संसारदुखं यातनां विच्छेदय-विच्छेदय पापानि संशमय-संशमय चतुवर्गं साधय-साधय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं यान् वयं द्विष्मो ये चास्मान् विद्विषन्ति तान् सर्वान् विनाशय-विनाशय मारय-मारय शोषय-शोषय क्षोभय-क्षोभय मयि कृपां निवेशय-निवेशय फ्रें ख्फ्रें ह्स्फ्रें ह्स्ख्फ्रें हूं स्फ्रों क्लीं ह्रीं जय-जय चर-अचरात्मक-ब्रह्माण्ड-उदरवर्ति-भूत-संघाराधिते प्रसीद-प्रसीद तुभ्यं देवि नमस्ते-नमस्ते-नमस्ते ।

अर्थ:- ॐ ख्फ्रें हसौ: सौ: श्रीं ऐं ह्रौं क्रों स्फ्रों सर्वसिद्धि प्रदान करे, प्रदान करे, मेरे मनोरथ पूर्ण करे, पूर्ण करे, मुक्ति प्रदान करे, प्रदान करे, भवपाश से मुक्त करे, मुक्त करे, जन्ममृत्यु से पार करे, पार करे, दुसरो की विद्या का प्रदर्शन करे, प्रदर्शन करे, अपवर्ग से उबारे, उबारे, संसारदुःख की यातना को दूर करे, दूर करे, पापों का नाश करे, नाश करे, चतुवर्ग का साधन करे, साधन करे, ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं, जो मुझसे द्वेष रखते हो, उन सबका विनाश करो, विनाश करो, मारों मारों, शोषण करो, शोषण करो, क्षोभण करो, क्षोभण करो, मुझ पर कृपा करो, कृपा करो, फ्रें ख्फ्रें ह्स्फ्रें ह्स्खफ्रें हूं स्फ्रों क्लीं ह्रीं जय जय चराचरात्मक-ब्रह्माण्ड-उदरवर्ति-भूत-संघाराधिते प्रसीद-प्रसीद तुभ्यं देवि नमस्ते-नमस्ते-नमस्ते । ( देवि! आपको बारम्बार-बारम्बार नमस्कार है ) ।
जय  श्री राधे 

Comments

  1. Kisi mantar ko sidh karna ho to ..jaise ap ne batya 1008 bar jap karo mantar sidh ho jayega

    Me ye janana chahta hu 1008 bar mantar sidh karne k liye 1 bar me
    1008 bar padhna hai
    Ya roj thoda thoda mantar padh sakte hai

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  2. आपने जीवन को सुखी बनाने का मंत्र के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी पढ़कर अच्छा लगा ।
    धन्यवाद

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