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Jay Sri Radhe Jay Sri Radhe https://www.presearch.org/

अनन्य भक्ति (Exclusive devotion)

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Jay Sri Radhe Jay Sri Radhe अनन्याश्चितन्तो मा ये जनाः पर्युपास्ते ।तेषां नित्याभियुक्तानां योग क्षेमंवहाम्हम् ।। यो  विश्वा दयते वसु होता मन्द्रो जनानाम् । मधोर्न पात्रा प्रथमान्यस्मै प्र स्तोमा यन्तवग्नये ।। सामवेद ऋचः 44 O God, you give love to the world, love my heart also. And you love me all the way. O Lord, take me to the truth from falsehood, lead me to light of ignorance from ignorance of ignorance and bring death from death to immortality. असतो मा सद्गमय ,तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय्।। Jay Sri Radhe Jay Sri Radhe हे  पार्थ ,अपनी बुद्धि का प्रवेश मुझ आदि,अन्त,मध्य,दिव्यातिदिव्य,आदिब्रह्म बीजरूपी,पारब्रह्म,तूर्यावस्था का मध्यगृह ,उस मेरे नित्य शुद्ध स्वरूप कांति पर करो । अपने निःशेष संकल्प को  अतितरुण तूर्यावस्था मय  कालरूपी यन्त्र के चालक चिदानंद ज्योतिरूप महाविद्युत से जला दो । O Partha, enter your intellect on the basis of me, end, mid, divyadidavya, adibrahim seed-root, parabrahm, the middle house of the tuarayavat, on that continous my pure nat

Jaykara

हरिः ॐतत्सत! पंगत की जयकारा सम्पूर्ण जेवत        संत           हरिहर        करैं         धन्य       पुरुषन्           के          भाग  । तिनके            गृह             पावन                भये          सन्त      पधारे            आय    ।। बोलियो    सन्तो         प्रेम    से                         मधुरी      सी         बानी    ।                          "     श्री  हरे     " श्री रामकृष्ण देव की सालग्राम परमात्मा की 卐 (नारायण)卐 श्रीमन्ननारायण की स्वयं ब्रह्म       नारायण की  , पूरणब्रह्म             नारायण की   ,सच्चिदानंद ब्रह्म   नारायण की , ज्योतिस्वरूप    नारायण की ,  आदि      नारायण की ,    अव्यय पुरुष      नारायण की ,   श्री लक्ष्मी शिवरी  नारायण की   ,   नर        नारायण की    ,बद्री           नारायण की ,    सूर्य       नारायण की ,  त्रियुगी         नारायण की,     शुक्र                नारायण की , शंख               नारायण की ।। 卐 (पुरुषोत्तम )卐 लीला       पुरुषोत्तम भगवान की मर्यादा       पुरुषोत्तम भगवान की यज्ञ          पुरुषोत्तम भगवान की आदि

Jagatguru Dwarachraya List जगतगुरू द्वाराचार्य सूची ।

श्री अनन्तविभूषित श्री जगतगुरू रामानंदाचार्य जी महाराज के शिष्य द्वाराचार्य कुल 52 शिष्य व उनकी परंपरा से भक्ति ज्ञान वैराग्य  की धारा से संपूर्ण विश्व लाभान्वित हो रहा है । उनकी गादी निम्न स्थानो में है । श्री रामानन्दी 1.ज.गु.श्री अनन्तानन्दाचार्यजी        पाटलीपुत्र    बिहार । 2.ज.गु. श्री सुरसुरानन्दाचार्यजी        परसा         छपरा बिहार 3.ज.गु. श्री सुखानन्दाचार्यजी            चित्रकूट,संगरू  पंजाब 4. ज.गु. श्री नरहर्यानन्दाचार्यजी         गढखाला  स्टेट  राजस्थान 5. ज.गु. श्री योगानन्दाचार्यजी            योगानन्द मठ   आरा  बिहार 6.  जगतगुरू श्री भावानन्दाचार्यजी    गढमुक्तेश्वर 7. जगतगुरू श्री  पीपाचार्यजी             गांगौरानगढ  राजस्थान 8.जगतगुरू श्री  रामकबीराचार्यजी       धाधी  सिरसी  बिहार 9. जगतगुरू श्री  राघवेन्द्राचार्यजी ( श्री खोजी जी) पालड़ी  मारवाड़ डाकौर धाम  त्रिवेणी धाम । 10. जगतगुरू श्री  कीलदेवाचार्य         गलता 11. जगतगुरू श्री  अग्रदेवाचार्यजी      रेवासा     सीकर  राजस्थान 12. जगतगुरू श्री  साकेतनिवासाचार्य  खेलना व डाकौर धाम गुजरात

Adhyatam Upnisad अध्यात्म उपनिषद ( हिन्दी व संस्कृत)

हरिःॐ ! श्री अन्तः शरीरे निहितो गुहायामज एको हि यस्य पृथिवी शरीरं यः पृथिवीमन्तरे यं पृथिवी न वेद । यस्यापः शरीरं यो ऽआपोऽन्तरे  संचरन्  यमापो न विदुः । यस्य र्तेजः शरीरं यस्यतेजोऽन्तरे संचरन् यं तेजो न वेद । यस्य वायुः शरीरं यो वायुमन्तरे संचरन् यं वायुर्न वेद । यस्याकाशः शरीरं यः आकाशमन्तरे संचरन् यमाकाशो  न वेद । यस्य मनः शरीरं यो मनोऽन्तरे  संचरन् यं मनो न वेद । यस्या  बुद्धिः शरीरं यो बुद्धिमन्तरे  संचरन्  यं बुद्धिर्न  वेद । यस्याहंकारः शरीरं  योऽहंकारमन्तरे संचरन् यमहंकारो न वेद । यस्य चित्तं  शरीरं  यश्चित्तमन्तरे संचरन् यमव्यक्तं  न वेद । यस्याक्षरं शरीरं योऽक्षरमन्तरे संचरन्  यमक्षरं  न वेद । यस्य मृत्यु शरीरं यो मृत्युमन्तरे  संचरन् यं मृत्युर्न वेद स एष  सर्वभूतान्तरात्माऽपहतपात्मादिव्यो  देवो एको नारायणः । अह ममेति यो भावो देहासादावनात्मनि अध्यासोऽहं निरस्तव्यो विदुषा ब्रह्मनिष्ठया ।।1।। ☀️हिन्दी में अर्थ ☀️ हरिः ॐ। शरीर के भीतर हृदय रूपी मुक्ता में एक  " अजन्मा नित्य " रहता है । इसका शरीर पृथ्वी है, वह पृथ्वी के भीतर रहता है,पर पृथ्वी उसे

सामवेद मंत्र आवश्यक

सामवेद के अति आवश्यक मंत्र । ●  卐सामवेद सारं 卐●First 卐   ॐ   卐 A. 1 .        यो विश्वा दयते वसु होता मन्द्रो जनानाम्।मधोर्न पात्रा प्रथमान्यस्मै  प्र स्तोमा यन्तवग्नये ।।  सा.44 2.   उप त्वा जुह्वोSमम् घृताचीर्यन्तु हर्यत ।अग्ने हव्या जुषस्व न:।।                                सा.1542 3. तद्विष्णो: परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः ।दिवीव चक्षुराततम् ।।                                   सा.1672 B   4.एन्द्र याहि हरिभि रूप कण्वस्य सुष्टुतिम् ।दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो ।           सा.1807 5.     जनीयन्तो न्वग्रवः पुत्रीयन्त सुदानवः ।सरस्वन्तं हवामहे।                                           सा.1460 6.   आ पवस्व सुवीर्यं मन्दमान: स्वायुध ।    इहै ष्विन्दवा गहि ।।                                          सा..... 7 .     आ मन्दैरिन्द्र  हरिभिर्याहि मयूररोमभि: ।  मा त्वा के चिन्नि ये मुरिन्न पाशिनोSति धन्वेव ताँ इहि ।।       सा.246 8.  यस्मिन विश्वा अधि श्रियो रणन्ति सप्त संसद:।    इन्द्रं सुते  हवामहे ।                                              सा.723        C  .9 .  कि

Sri Ganesh श्री गणेश साधना

श्री गणपति अथर्वशीर्ष ।।ॐ श्री गणेशाय नमः ।। यं नत्वा मुनयः सर्वे निर्विघ्नं  यान्ति  तत्पदम । गणेशोपनिषद्वेद्यं  तद्ब्रह्मैवास्मि सर्वगम । ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं  पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा@सस्तनूभिः ।व्यशेम देवहितं यदायुः  । स्वस्ति न इन्द्रो  वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः  पूषा  विश्ववेदाः  ।  स्वस्ति  नस्तार्क्ष्यो  अरिष्टनेमिः  । स्वस्ति  नो  वृहस्पतिर्दधातु  ।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।। हरिः ॐ नमस्ते गणपतये । त्वमेव  प्रत्यक्षं  तत्वमसि  । त्वमेव केवलं  कर्तासि  ।  त्वमेव केवलं  धर्तासि  ।  त्वमेव  केवलं  हर्तासि  । त्वमेव  सर्वं खल्विदं  ब्रह्मासि  । त्वं  साक्षादात्मासि  नित्यम्  ।। 1 ।। ऋतं  वच्मि  । सत्यं वच्मि  । अव त्वं  माम्  । अव वक्तारम्  । अव श्रोतारम्  ।।2 ।। अव दातारम्  । अव धातारम्  ।   अवानूचानमव  शिष्यम्  । अव  पश्चात्तात्  । अव  पुरस्तात  ।  अवोत्तरात्तात्  ।  अव दक्षिणात्तात  । अव   चोर्ध्वात्तात्   । अवाधरात्ताय्  ।  सर्वतो  मां  पाहि पाहि  समन्तात्  ।। 3।। त्वं  वाङ्मयस्त्वं  चिन्मयः  ।   त्वमानन्दमयस्त्वं  ब्रह्ममयः 

"श्री लक्ष्मीनारायण साधना "

श्री लक्ष्मीनारायण साधना मंत्र ।।ॐ तत्सत ।।                        ।।नारायण हृदयम् ।। ।।हरिः ओम् ।।☀️अस्य श्रीनारायण-हृदय-स्तोत्र-महामन्त्रस्य भार्गव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः लक्ष्मीनारायणो देवता नारायण प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।। ☀️करन्यास नारायणः परं ज्योतिरिति अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । नारायणः परं ब्रह्मेति तर्जनीभ्यां नमः । नारायणःपरो देव   इति  मध्यमाभ्यां नमः । नारायणःपरं धामेति अनामिकाभ्यां नमः । नारायणः परो धर्म इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः । विश्वं नारायणः इति करतलपृष्ठाभ्यां नमः ।। ☀️अङ्गन्यास:- नारायणःपरं ज्योतिरिति  हृदयाय नमः । नारायणःपरं ब्रह्मेति शिरसे स्वाहा । नारायणः परो देव इति शिखायै वौषट् । नारायणः परं धामेति कवचाय हुम् । नारायणः परो धर्म इति नेत्राभ्यां वौषट् । विश्वंनारायण इति अस्त्राय फट् ।                  भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः ।। ☀️।।।।अथ ध्यानम् ।।। उद्यादादित्यसङ्काशं पीतवासं  चतुर्भुजम् । शङ्खचक्रगदापाणिं ध्यायेल्लक्ष्मीपतिं हरिम् ।।1 त्रैलोक्याधारचक्रं तदुपरि कमठं तत्र चानन्तभोगी  तन्मध्ये भूमि पद्माङ्कुश शिखरदळं कर्णिकाभूत-मेरुम् । तत्रत्यं

श्री हनुमान

 श्री हनुमान साधना ☀️श्री हनुमान कवच माला मन्त्रस्य ☀️ ॐ नमो भगवते  विचित्रवीर हनुमते प्रलयकालानलप्रभाज्वलत्प्रताप वज्रदेहाय अञ्जनीगर्भसम्भूयाय प्रकटविक्रमवीर दैत्यदानवयक्षराक्षसग्रहबन्धनाय भूतग्रहप्रेतपिशाचग्रह  शाकिनीग्रह डाकिनीग्रह काकिनीग्रह कामिनीग्रह ब्रह्मग्रह ब्रह्मराक्षसग्रह चोरग्रहबन्धनाय एहि एहि आगच्छ आगच्छ आवेशय आवेशय मम ह्रदयं प्रवेशय प्रवेशय स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर सत्यं कथय  व्याघ्रमुखं बन्धय बन्धय सर्पमुखं बन्धय बन्धय राजमुखं बन्धय बन्धय सभामुखं बन्धय बन्धय शत्रुमुखं बन्धय बन्धय सर्वमुखं बन्धय बन्धय लंकाप्रसादभञ्जनं सर्वजनं में वशमानय वशमानय श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वान आकर्षय आकर्षय शत्रून् मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरू कुरू मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ।।ॐ ह्रां ह्रीं  ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट्  श्रीविचित्रवीरहनुमते मम सर्व शत्रून् भस्मी कुरु कुरु हन हन ह्रुं फट् स्वाहा ।।। ☀️श्रीहनुमान माला मंत्र ☀️ ॐ ऐं  श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रस्फें  ख्र्फ्रें  ह्स्रौं  ह्र्स्ख्फें ह्र्स्रौं ॐ नम