मो सम दीन ----सभी दोहे श्रेष्ठ स्तुति
।।दोहा स्तुति ।।
मो सम दीन न दीन हित , तुम समान रघुवीर ।
अस विचारि रघुवंश मनि हरहु विषम भवभीर ।।1
कामहि नारि पियारि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम ।
तिमि रघुनाथ निरन्तर प्रिय लागहु मोहि राम ।।2
प्रनतपाल रघुवंशमनि करुनासिन्धु खरारि ।
गये शरण प्रभु राखिहहिं सब अपराध विसारि ।।3
श्रवन सुजस सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।
त्राहि त्राहि आरति हरन शरण सुखद रघुबीर ।।4
अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरवान ।
जनम जनम रति राम पद यह वरदानु न आन ।।5
बार - बार बर मागउँ हरषि देहु श्री रंग ।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ।।6
बरनि उमापति राम गुन हरषि गये कैलास ।
तब प्रभु कपिन दिवाए सबविधि सुखप्रद वास ।।7
एक मंद मैं मोहबस कुटिल हृदय अग्यान ।
पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबन्धु भगवान ।।8
बिनती करि मुनि नाव सिर कह कर जोरि बहोरि ।
चरन सरोरुह नाथ जनि कबहु तजै मति मोरि ।।9
नहिं विद्या नहिं बाहु बल नहिं खर्चन कछु दाम ।
मोसे पतित पतंग के तुम पति राखो राम ।।10
एक छत्र एक मुकुट मनि सब वर्णन परि जोऊ ।
तुलसी रघुवर नाम के बरन बिराजत दोऊ ।।11
कोटि कल्प काशी बसै , मथुरा कल्प निवास ।
एक निमिष सरजू बसै तुलै न तुलसीदास ।।12
राम जी नगरिया राम की , बसै सरजू के तीर ।
अचल राज महराज की , चौकी हनुमत बीर ।। 13
कहा कहौं छबि आज कीए भले बिराजो नाथ ।
तुलसी मस्तक तब नवै ,धनुष बाण लियो हाथ ।।14
कित मुरली कित चन्द्रिका ,कित गोपियन के साथ ।
अपने जन के कारने , श्रीकृष्ण भए रघुनाथ ।।15
अवध धाम धामादि पति अवतारण पति राम ।
सकल सिद्ध पति जानकी ,दासन पति हनुमान।16
कर गहि धनुष चढाइयो , चकित भए सब भूप ।
मगन भई श्री जानकी , देख राम जी के रूप ।।17
राम वाम दिसि जानकी , लखन दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्यानमय , सुर तरु तुलसी तोर ।18
नील सरोरुह नील मनि , नील नीर घनश्याम ।
लाजहिं तन शोभा निरखि,कोटि-कोट सत काम।19
श्रीगुरु मूरति मुख चन्द्रमा , सेवक नयन चकोर ।
अष्ट पहर निरखत रहों , श्रीगुरु चरन की ओर ।।20
चलो सखी वहाँ जाइए , जहाँ बसै बृजराज ।
गोरस बेचत हरि मिलै , एक पंथ दोउ काज ।।21
बृज चौरासी कोस में , चार धाम निज धाम ।
बृन्दावन और मधुपुरी , बरसाने नन्द ग्राम ।।22
बृन्दावन सौं बन नहीं , नन्द ग्राम सौं ग्राम ।
बंशीवट सौं वट नहीं , श्रीराम कृष्ण सौं नाम ।। 23
राधे तुम बड़ भागिनी , कौन तपस्या कीन ।
तीन लोक तारन तरन , सो तेरे आधीन ।। 24
आपनि दारुन दीनता , कहउँ सबइ सिर नाय ।
देखे बिनु रघुनाथ पद , जिय कै जरनि न जाय ।।25
कोटिन तीरथ कामना , कोटिन रास विलास ।
रजधानी रघुनाथ की , गावै तुलसीदास ।। 26
अस प्रभु दीनबन्धु हरि , कारन रहित दयाल ।
तुलसीदास सठ तेहिं भजु ,छाड़ि कपट जंजाल।27
एक घड़ी आधी घड़ी , आधी में पुनि आध ।
तुलसी संगत साधु की , हरै कोटि अपराध ।। 28
।☀️सियावर रामचन्द्र जी की जै ,
☀️श्री अयोध्या राम जी लला की जै
☀️श्री पवनसुत हनुमान जी की जै ,
☀️श्री उमापति महादेवजीकी जै ।
☀️श्री रमापति रामचन्द्रजीकी जै ,
☀️श्रीवृन्दावन कृष्ण बलदाऊजीकी जै ।
☀️बोलो भाई सब संतन की जै ,
☀️अपने अपने श्री गुरु महाराज की जै ।
जै जै सीताराम ।।
Comments
Post a Comment