कायाकल्प

।।सुप्रभात ।।
                              ।।ॐतत्सत।।
प्रामाणिक संग्रहणीय लेख/
दिव्य महौषधि सोमलता,सोमवल्ली -
ब्रह्मादयोसृजन्पूर्वममृतं सोमसंज्ञितम्।
जरामृत्युविनाशाय विधानं तस्य वक्ष्यते।।
ब्रह्मादिक देवताओं ने पूर्व (सृष्टि के आदि) काल में सोमलता नामक अमृत तुल्य औषधि को जो जरा (वृद्धता)और मृत्यु के नाश करने के लिए उत्पादन किया है उसी को आज में कहता हूं।
यह सोमलता नाम की महाऔषधि मनुष्य की स्वभावजन्य व्याधियों (क्षुधा, तृष्णा, निद्रा, जरा ,मृत्यु आदि ) के प्रतिषेधरुप अर्थात नाश के लिए है।
सोमलता के भेद-
सोमलता नामक महा औषधि एक ही होती है परंतु स्थान, नाम ,आकृति, वीर्यादिक भेद से यह 24 तरह की पाई जाती है। इसका वर्गीकरण प्राचीन ऋषियों ने गायत्री के 24 अक्षरों के आधार पर ही किया है।
१. अंशुमान २. मुंजवान ३. चंद्रसोम४. रजतप्रभ ५. दूर्वासोम ६. कनीयान ७.अंशवान ८.स्वयंप्रभ ९.महासोम १०.गरुणाहृत ११.श्वेतक्ष,१२.कनकप्रभ १३.प्रतानवान १४.तालवृन्त १५.करवीर १६.गायत्र १७.त्रैष्टुभ १८.पांक्त १९.जागत २०.शांकर २१.अग्निष्टोम २२.रैवत २३.यथोक्त २४.उडुपति।
इस औषधि के संबंध में आपको बता दूं यह औषधि सामान्य जनों को प्राप्त नहीं हो सकती, शुद्ध ह्रदय महायोगी ,सर्वथा निस्पृह महातपस्वी भक्तों को ही विशेष प्रयत्न द्वारा यह औषधि प्राप्त हो सकती है।
प्राप्ति स्थान-बादलों से ढकी हुई सर्वोच्च पर्वत मालाएं, चंद्रमा नाम की सोमलता कारगिल से ऊपर लेह लद्दाख मैं प्रवाहमान सिंधु नदी के तटों पर,क्षुद्रकमानस सरोवर,(मानसबल) बड़गांव मेंं, सह्याद्रिपर्वत मालाएं ,देवगिरि पर्वत ,श्रीशैल ,मलयाचल, और महेंद्र पर्वतों के दुर्लघ्य स्थानों में यह महाऔषधी होती है।
सोमलता की पहिचान-सभी तरह की सोम लता 15 पत्तों वाली होती है ज्ञातव्य बात यह है कृष्ण पक्ष में इसके सभी पत्ते झड़ जाते हैं शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को 15 पत्ते हो जाते हैं। शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन एक पत्ता निकलता है वैसे ही कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से एक पत्ता झड़ना शुरू होता है जो अमावस्या तक बिल्कुल झड़ जाते हैं और लता ही शेष रहती है। गरुणाहृत और श्वेताक्ष सोम हिंसक पशुओं से युक्त घनघोर जंगलों में पेड़ों के अग्रभाग में लटके रहते हैं यह दोनों ही सांप की केचुली के समान पांडुरंग के होते। कोई सोमलता अनेक तरह की पत्तों वाली, कोई दूधवाली , कोई कंद वाली, कोई क्षुप्र प्रजाति की होती है। लेकिन सभी 15 पत्तों वाली ही होती हैं।

मेरे अनुभव पूर्ण विचार-सोमलता की खोज मैंने कई वर्षों तक की सोम यज्ञों में प्रयुक्त होने वाला मुंजवान और दूर्वा सोम, महा हिमालय की उच्चतम चोटियों पर सर्वत्र पाया जाता है समुद्र तल से 9000 फुट की ऊंचाई से लेकर 22000 फुट की ऊंचाई तक यह दोनों सोमलताए पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।मुंजवान सोम का प्रयोग ऋषि मुनि सोम यज्ञों में रस निकालकर आहुति देकर करते थे वर्तमान में यह सोम लता दमा, श्वास, कास जैसे रोगों में प्रयुक्त होती है इस्को कई स्थानों पर मैंने पर्याप्त मात्रा में देखा है। धारचूला से ऊपर नाग पर्वत ,हिमाचल प्रदेश ,कश्मीर में यह सोम लता पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है।
खोज के दौरान मैंने कश्मीर घाटी में स्थित बारामुला जिले में मानसबल (क्षुद्रक मानसरोवर) शांकर ,गायत्र,जागत नामक सोम लता की खोज के लिए प्रयत्न किए कश्मीर घाटी में आतंकवाद के चरम पर होने के कारण भारतीय सुरक्षाबलों ने जायदा अन्वेषण नहीं करने दिया।
लेकिन मैंने झील के ऊपरी पर्वतों पर देखा कई त्रिगर्भा गुफाएं वहां टूटी पड़ी हैं जिसका कायाकल्प के लिए प्राचीन काल में प्रयोग किया गया था इससे ऐसा प्रतीत हुआ इस झील के किनारे पहाड़ियों पर अवश्य ही सोम लता विद्यमान है। ऐसी कई तरह की सोमलताए मेरे संज्ञान में है जो समय आने पर अन्वेषण में लाई जाएगी।

बनावट-किसी सोम लता में कंद होता है और किसी में नहीं होता है ,मैं कंद वाली सोम लता के संबंध में ही बताऊंगा। रजतप्रभ और अंशुमान सोमलता कंद वाली होती है।
सोमपान से पूर्व ज्ञातव्य बातें-सोम लता का रस पीने से पूर्व व्यक्ति को चाहिए  शास्त्रीय विधान अनुसार 24 लाख गायत्री मंत्र का सविधि जप अवश्य कर लें जिससे मानस शुद्ध हो जाए। प्रयोग विधि से पूर्व अपने कोष्ठ को योग एवं औषधियों से शुद्ध कर लें। सोमलता  को शुभ मुहूर्त में अर्थात रविपुष्य योग में अथवा गुरुपुष्य योग में लाएं और उसके पूर्व औषधि को विधिपूर्वक निमंत्रण अवश्य दें।
प्रयोग से पूर्व  एकांत में एक त्रिगर्भा गुफा का निर्माण अवश्य ही कराएं जिसमें भुरभुरी मिट्टी बिछी हुई हो।  गुफा प्रयोगकर्ता की धूप एवं वात से रक्षा करेगी।
एक समर्पित शिष्य अथवा परिचारक रखें ,प्रयोग से पूर्व दुधारू देसी गाय का प्रबंध अवश्य करें। अणु तेल मलयागिरी चंदन को पहले से ही संग्रहित कर लें जिससे प्रयोग करने के पश्चात कोई असुविधा नहीं हो। मीठे जल के कुआं अथवा नदी तट अवश्य ही होना चाहिए।
प्रयोग करने के पश्चात शीशे में अपना मुख नहीं देखे।

 कायाकल्प के लिए सोमपान की विधि-
पूर्णिमा से पूर्व शुभ मुहूर्त में सोम लता को आमंत्रित करें और पूर्णिमा की प्रातःकाल अंशुमान अथवा रजतप्रभ सोमलता को विनीत हो प्रार्थना पूर्वक लाएं और अंशुमान नामक सोम के कंद को अच्छी तरह धोकर स्वर्ण पात्र में रखे।
प्रयोग से पूर्व 1000 गायत्री मंत्र से हवन करें, तर्पण ,मार्जन करें फिर गुफा के अंतिम दरवाजे में जाकर स्वस्तिवाचन करें। स्वस्तिवाचन के अनंतर स्वर्ण की सींक से धुले हुए कंद से स्वर्ण पात्र में रस निकाल लें,और एक बार में ही एक मुट्ठी भर सोम लता कंद का रस पी जाएं जो शेष बच जाए उसे जल में विसर्जित कर दें।
पालनीय नियम-
रसायनं पीतवास्तु निर्वाते तन्मना: शुचि:।
आसीत तिष्ठत्क्रामेच्च न कथंचन संविशेत्।।
अर्थात रसायन का सेवन करके पवन रहित स्थान में पवित्रता से उसी तरह मन लगाए हुए बैठा रहे कभी टहलता रहे परंतु कदाचित भी सोए नहीं।
सायं काल चुरा लगने पर गाय का धारोषण दूध पिए, फिर शांति पाठ करके कुश की शैय्या पर अथवा चर्म बिछाकर शिष्य से सेवित होकर शयन करे ।तृषा लगे तो थोड़ा सा ठंडा जल पी ले ,दूसरे दिन प्रभात काल में उठकर शांति पाठ करें मंगलाचरण करे ,पाली हुई गाय का स्पर्श करें ,और पहले की भांति बैठ जाएं।
इसी तरह से लगातार दिनचर्या जारी रखें फिर आठवें दिन प्रभात होते ही दूध से शरीर का परिषेक (सिंचन) कर चंदन का लेप लगाएं दूध पिला कर रेत  पर रेशमी कपड़ा बिछाकर शैय्या पर  लिटाएं ।
आठवें दिन के पश्चात प्रयोक्ता का शरीर फूल जाता है रोम कूप चौड़े हो जाते हैं ,समस्त रोमों से पूर्व कर्म जनित पाप रूपी कीड़े निकलते हैं औषधि के प्रभाव से शरीर में प्राण मात्र ही शेष रहते हैं ।पूर्व के दांत, केश, नख  मांस गिर जाते हैं त्वचा बदलने लगती है इस तरह प्रयोक्ता के ऊपर उपर्कथित प्रक्रिया को अपनाएं सोम के वल्कल से उसका परिषेक करें 16 दिन तक यह प्रक्रिया जारी रखें।
17 वें दिन उसके नए  नुकीले दांत निकलते हैं जो स्फटिक मणि के समान चमकीले एक जैसे होते हैं।
भूख लगने पर साठी के चावल की खीर प्रयोक्ता को खिलाएं। 25 दिन तक इस प्रक्रिया को जारी रखें।
25 वें दिन से शालि चावलों का भात दूध खाने को दें जिससे उसके मूंगे की भांति नख निकलते  हैं। साथ ही घुंघराले श्याम केश उत्पन्न होते हैं।
शरीर 16 वर्ष के बालक जैसा नवीन हो जाता है नया मांस ,नई त्वचा, नए नख, नए केस उत्पन्न हो जाते हैं।
पूर्वोक्त विधि से 3 महीने तक त्रिगर्भा गुफा में रहकर इसी तरह से आचरण करें। इस तरह से साधक का पूर्ण रूप से कायाकल्प हो जाता है और साधक सहस्त्रजीवी हो जाता है।
सोमपान का फल-
औषधीनाम पतिंसोममुपयुज्यं विचक्षण:।दशवर्षसहस्त्राणि नवां धारयते तनुम्।।
न अग्निं न तोयं न विषं न शस्त्रं नास्त्रमेव च।
अर्थात औषधियों के पति सोम का सेवन करने वाला बुद्धिमान 10000 वर्ष की अवस्था वाला नवीन शरीर धारण करता है ।उसे अग्नि, जल, विष, शस्त्र ,अस्त्र इनमें से कोई भी उसकी आयु नष्ट करने में समर्थ नहीं होते हैं (अर्थात किसी से भी वह नहीं मर सकता)
60 वर्ष की अवस्था वाले मद से झड़ते हुए हाथी के 1000 हाथियों के बल वाला हो जाता है। उन्हें क्षीर सागर ,इंद्रलोक ,कैलाश ,जहां भी जाना चाहे अपने मन के संकल्प मात्र से तत्क्षण पहुंच जाता है ।रूप में वह कामदेव के समान दूसरा चंद्रमा जैसा महा दीप्तिमान होकर प्राणियों के मन को परम आनंद देने वाला हो जाता है ।सब वेदों के सांगोपांग तत्व को जानने वाला होता है ।और देवताओं की भांति संपूर्ण जगत में अमोघ संकल्प होकर विचरता है।
सोमलता को अधर्मी,कृतघ्नी,भेषजद्वेषी ,ब्रह्मद्वेषी  मनुष्य नहीं देख सकते ना ही इसको  प्राप्त कर सकते हैं। दिखाई ना देने की वजह से यह इसका उपयोग भी नहीं कर सकते।
ऐसी ही कई दिव्य औषधियां और हैं जो सभी मनुष्यों को दिखाई नहीं देती है।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया ।सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दु:खभाग्भवेत।।
स्वामी मदनमोहन दास जी महाराज 

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