Kumbh ( कुंभ )

कुंभ  में  महान आत्माओं का मिलन  होता है ।
       महान आत्माएं वे हैं जो
        अंतिम पैमाने से पार होती हैं
         पैमाना :काम ,क्रोध, मद और लोभ विकार से परे हो।
          अमुक विकारों  से परे है कैसे जानें ।
         स्वयं नहीं जान सकते तो किसी बुद्धिमान का साथ लें।
         बुद्धिमान कौन है
          जो किसी को किसी बंधन में न रखे।
         जान गए तो अवश्य महान आत्माओं के दर्शन होंगे ।
         वे आत्माएं करोड़ों में एक होती हैं ।
         फिर  कब मिलेंगी कोई भरोसा नहीं
        केवल असली अमृत कुंभ के अधिकारी वही है ।
         इसके अलावा कुंभ वेला में  सभी मिलेगा ।जो चाहोगे
          आओ खोजते हम भी हैं खोजो आप भी।
          ............
            कुंभ के अंदर पाए जाने वाले अमृत की उत्पत्ति,
            प्राप्त करने की विधि ,गृहण करने की  योग्यता,
              और अमृत का पान जानते है,श्री गुरु देव की
            अमृत वाणी से ।.....

 कुंभ में छिपे रहस्य को जानने के लिए कुछ और जानना होगा।
1.कुंभ कहाँ है ?
2.कुंभ में क्या है ?
3. कुंभ किसे प्राप्त हो सकता है ?
4.कुंभ की अंतरवस्तु हमें कैसे मिले ?
5. कुंभ का फल संतों को कैसे मिलता है ?
6. कुंभ में सर्वाधिक रहस्य मय कौन सी उपलब्धि है ?
              व अन्य प्रश्न है ?


अब मैं श्री  गुरु देव की कृपा से इन सब के उत्तर
देने की  कोशिश करूँगा ।

वास्तव में  इस सृष्टि का रहस्य साधकों के अन्दर ही होता है ।
जितना भीतर होता है ।उतना ही बाहर होता है ।और यह "अक्षय अमृत कलश" ( कुंभ) साधकों के आत्मा में  है।
  अब आत्मा में स्थिति "अक्षय अमृत कलश " को आत्मा के
द्वारा ही धारण किया जाता है ।किंतु आत्मा को जगाने से ही
 यह प्रक्रिया संभव है ।
       जगाना संभव है,पहले इन्द्रियों को जीतकर, फिर बुद्धि को स्थिर कर,फिर योग बल को बढ़ाकर यह प्रक्रिया संभव  की जाती है ।
यह दक्ष संतों द्वारा ही किया जाता है।
अब पृश्न उठता है कि आखिर यह पात्र जिसमें अमृत है वह कौन देता है?तो निश्चित ही परमात्मा यह अमृत अपने भक्तों को देता है और यह उपलब्धि केवल भक्त के लिए ही है।
 और यह अमृत कलश में जो उपलब्धि है वह केवल परमात्मा का एक कृपा  प्रसाद है । जो कि भक्त को स्वीकार करना ही चाहिए ।
यह उपलब्धि केवल सच्चे भक्त को ही प्राप्त हो सकती है,
और कलश की अंतरवस्तु सब को प्राप्त हो सकती है,इसके लिए पहली आवश्यक स्थिति जो कि सही और उचित समय,
जब अमृत को बाहर लाया गया ।जो कि इस अमृत का भगवान धनवन्तरी स्वयं खास समय में यह अमृत सबको देने
की इच्छा करते हैं ।जिससे यह अमृत का पालेना सरल हो जाता है ।
 अब यह अमृत केवल और केवल अद्भुत दूसरे शब्दों में
सब के लिए अनजान संतों ,जिनके पास अनुभव अनुभूति
तथा रहस्य है ,को यह कृपा प्राप्त होती है ।
 और यह परमात्मा की कृपा एक बार जिसे मिले वह निश्चय ही इस इस लोक वासीयों के लिए रहस्य अर्थात अदृश्यमय हो जाती है ।
.......Jay Sri Radhe Jay Sri Radhe
Jay Sri Radhe Jay Sri Radhe
पर यह सब कुछ साधना है ।
जो संसार के अतिरिक्त सबसे
परिपूर्ण केवल ज्ञान स्वरूप परमात्मा
के ध्यान द्वारा असंभवता  से प्राप्त
अखंड ज्ञान की और साधक अग्रसर
होता है ।

इसी साधना की गोपनीय रहस्य को
एक प्राथमिक साधक अनुभवी साधक
से सेवा द्वारा प्राप्त करता है ।
और यह प्रकिया का उचित समय व दक्षता केवल कुंभ में ही प्राप्त होती है ।

कुम्भ स्नान की विधि UP महाकुम्भ * * * * * * प्रात : काल उठकर सर्वप्रथम देवस्मरण करे पश्चात शौचादि क्रियाओं से निवृत होकर कुम्भ पर्व महत्वसूचक श्लोकों का स्मरण करें । अनन्तर यथासमय कुम्भ स्नानार्थ गंगा आदि पवित्र नदी में जाकर अपने दोनों हाथों द्वारा कुम्भ मुद्रा ( कलश - मुद्रा ) दिखलाकर और उसमें अमृत की भावना कर निम्नलिखित श्लोकों को पढ़ते हुए स्नान करें देव - दानवसम्बाद मध्यमाने महादधौ । उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम् । । त्वत्तीय सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्ययि स्थिताः । त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणा : प्रतिष्ठिताः । । शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णस्त्वं च प्रजापतिः । आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः । । त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः । त्वत्प्रसाददिम स्नानं कर्तमीहे जलोभ्दव । । सान्निध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा । । स्नान करने के बाद सन्ध्या - तर्पणादि से निवृत होकर गणपति - पूजनपवूक , कुम्भ ( कलश ) स्थापना करें । अनन्तर श्रद्धा भक्ति से कुम्भ का षोडशोपचारपूर्वक पूजन , करें । पश्चात एक , चार , ग्यारह . इक्कीस अथवा यथाशक्ति । सुवर्ण , रजत , ताम्र या पीतल के कलशों में धत भर क . . सुपात्र योग्य विद्वानों का ' धृत कुम्भा ' दान करें । Prio104 Coope

d हरिद्वार - माहात्म्यम् स्कन्द उवाच श्रृणु नारद वक्ष्यामि लोकानां मुक्तिकारणम् । सकृत्स्नानं तु यैर्मत्यैर्गगंगाद्वारे शुभवाहे । । न तेषां पुनरावृति : कल्पकोटिशतैरपि 111 स्कन्द नारद से कहते है - हे नारद ! मैं तुम्हें है मनुष्यो की मुक्ति का एक उपाय बताता हूं , जो लोग एक बार भी श्रीहरिद्वार में गंगास्नान करते हैं वे फिर संसार में र जन्म नहीं लेते चाहे करोड़ों कल्प बीत जायें । । । dooddadd dddddddddddda यदा भागीरथी राजा सूर्यवंशधरः प्रभुः । । आनयामास स्वर्गाद्वै गंगा परमपावनीम् / 21 स्वर्गानिपतिता गंगा प्रथिव्यामागता यदा । तदेवास्य द्विज श्रेष्ठ गंगाद्वारमिति श्रुतम् । । जब सूर्य वंश का राजा भगीरथ उग्र तप करके स्वर्ग से श्रीगंगा को लाये और श्रीगंगा स्वर्ग से उतर कर पृथ्वी में आई , उसी दिन से इस तीर्थ हरिद्वार का नाम गंगाद्वार पड़ा 12131 daddddddddddroid धन्यानां पुरुषाणां हि गंगाद्वारस्य दर्शनम् । विशेषतस्तु मेषार्क सङ्कमेऽतीव पुण्यदे 141 पुणयात्मा पुरुषों को श्री हरिद्वार के दर्शन होते हैं , र विशेष कर इस तीर्थ में स्नान - दानादि का महात्म्य मेष संक्रान्ति में होता है 14 । तत्रापि कुम्भराशिस्ये वाक्पो सुर वन्दित । अयने विषुवे चैव संक्रान्तौ चन्द्र - सूर्य योः । । ग्रहणे वा व्यातीपाते पूर्णिमायां महामुने । हे महामने । उसमें भी जब कुम्भ राशि पर बहस्पति हो और मेष राशि पर सूर्य आवे उत्तरायण , 105

१५0 daddeddadi दक्षिणायण संक्रान्ति में तथा चन्द्र , सूर्य ग्रहण में और व्यतीपात पूर्णिमा में 15 । सोमवारान्वितायां वा यस्यां कस्यामथापि वा । अमायर्या च तथा माघे वैशाखे कार्तिकऽपि वा 161 सोमवती अमावस्या में अथवा अन्य किसी अमावस्या में एवं माघ , वैशाख तथा कार्तिक मास में इस हरिद्वार तीर्थ का दर्शन तथा स्नान आदि का बड़ा माहात्म्य है 161 तिम्रः कोठ्ययोऽईकोटी च तीर्थानां मुनिसत्तम । भजन्ते सन्निधिं तत्र स्नातः सर्वत्र जायते 171 हे मने । साढे तीन करोड तीर्थ हरिद्वार तीर्थ में निवास करते हैं जिसने हरिद्वार तीर्थ में स्नान किया उसने समस्त तीर्थो में स्नान किया 171 ज्येष्ठ मासि सित्ते पक्षे दशम्यां स्नानमात्रतः । प्राप्यते परमं स्थानं दुर्लभं योगिनामपि 181 ज्येष्ठ के महीने में शुक्ल पक्षकी दशमी ( दशहरा गंगा जन्म ) के दिन केवल स्नान करने से परमधाम की है प्राप्ति होती है जो कि योगियों को भी दुर्लभ है 18 । कुशावर्त महातीर्थ दक्षिण ब्रह्मतीर्थतः । स्नानं दानं जपो होमः स्वाध्यायः पितृतपर्णम् । । " यदन्न क्रियते कर्म तत्तत्स्यात्कोटिसंख्यकम् 191 ब्रह्मकुण्ड से दक्षिण की ओर ( एक फलांग की दूरी पर ) कुशावर्त नामक महातीर्थ है , यहां स्नान , दान , जप , होम , वेदादि पाठ तथा श्राद्ध , तर्पण जो कुछ किया जाता है , वह करोड़ो गुण अधिक फलदायी होता है । । गंगाद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नीलपर्वते । । स्नात्वा च कनखले तीर्थ पुनर्जन्म न विद्यते 1101 हरिद्वार , कुशावर्त , बिल्वकेश , नीलपर्वत तथा कनखल तीर् में स्नान करने से मनुष्य को फिर जन्म नहीं लेना पड़ता 1101

उज्जैन के सम्बन्ध में - कुशस्थली महाक्षेत्र योगिनां स्थानदुर्लभम् । माधवे धवल पक्ष सिंह जीव अजे रवा । । तुलाराशो निशानार्थ पूर्णायां पर्णिमातियो । व्यतीपाते तु सजाते चन्द्रवासरसंयुते । । उज्जयिन्या महायोग स्नाने मोक्षमवाप्नुयात् । । धारायां च तदा कुम्भा जायते खलु मुक्तिदः । । । नासिक के सम्बन्ध में - पष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम् । सद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थं च बृहस्पती । । जिस समय बृहस्पति सिंह राशि पर हो उस समय गोदावरी में केवल एक बार स्नान करने से मनुष्य साठ ह हजार वर्षों तक गंगा स्नान करने के सदृश पुण्य प्राप्त करता है । ridabadriniortioringtone न्य ब्रह्मवैवर्त पराण के अनसार अश्वमेघफलं चैव लक्षगोदानजं फलम् । । प्रापन्नोति स्नानमात्रेणा गोदायां सिंहगे गरी । । जिस समय बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित हो उस समय गोदावरी में केवल स्नान मात्र से ही मनुष्य अश्वमेघ यज्ञ करने का तथा एक लाख गौ - दान करने का पुण्य प्राप्त करता है । ब्रह्माण्ड पुराण में लिखा है - यस्मिन् दिने गुरुयोति सिंहराशौ महामते । । तस्मिन् दिन महापुणयं नरः स्नानं समाचरेत । । यस्मिन् दिने सुरगुरुः सिंहराशिगतो भवेत् । तस्मिस्तु गौतमीस्नानं कोटिजन्माघानाशनम । । तीर्थानि नद्यश्च तथा समुद्राः । क्षेत्राण्यरत्लानि तथा श्रमाश्च । । वसन्ति सर्वाणि च वर्षमेकं । गोदावरी तटे सिंहगते सुरेज्ये । । 94

कले कुम्भ स्नान का महत्व तान्येव यः पुमान् योगे सोऽमृतत्वाय कल्यते । देवा नमन्ति तत्रस्थान् यथा रजा धनाधिपान् । । । जो मनुष्य कुणायोग में स्नान करता है , वह अमृततत्व ( मुक्ति ) की प्राप्ति करता है । जिस प्रकार दरिद्र : मनुष्य सम्पत्तिशाली को नम्रता से अभिवादन करता है , उसी प्रकार कुरणपर्व में स्नान करनेवाले मनुष्य को देवगण । नमस्कार करते है । हरिद्वार के सम्बन्ध में - कुम्भराशिंगते जीव तथा मेषे गते रवी । हरिद्वार कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम् । । कुम्भाराशि में बृहस्पति हो तथा मेष राशि पर सूर्य हो तो हरिद्वार के कुरा में स्नान करने से मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है । प्रयाग के सम्बन्ध में - सहसं कार्तिक स्नानं माघे स्नानशतानि च । वैशाखे नर्मदा कोटि : कुम्भास्नानेन तत्फलम् । । कार्तिक महीने में एक हजार बार गंगा स्नान करने से , माघ में सौ बार गंगा में स्नान करने से और वैशाख र में करोड़ बार नर्मदा में स्नान करने से जो फल होता है । वह प्रयाग में कुम्भ पर्व पर सिर्फ एक ही बार स्नान करने से प्राप्त होता है । विष्णुराण में इस प्रकार उल्लेख मिलता है - अश्वमेघसहस्राणि वाजपेयशतानि च । लक्ष प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भास्नानेन तत्फलम् । । हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से , सौ वाजपेय यज्ञ करने से और लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जोर Poooooooooooo फल प्राप्त होता है , वह फल केवल प्रयाग में कुम्भ के स्नान से प्राप्त होता है । 93

महाभारत और स्कन्दपुराणादि में इसके उज्जयिनी , अवन्ती , । अवन्तिका और धारा आदि नाम मिलते हैं । do ( नासिक ( गोदावरी ) मेषराशिंगते सूर्य सिंहराशी बृहस्पतौ । गोदावर्या भवेत् कुम्भो जायते खलु मुक्तिदः । । ( स्क0 पु० ) जिस समय सूर्य मेष राशि पर हो और बृहस्पति सिंह राशि पर हो तो उस समय नासिक ( गोदावरी ) में मुक्तिप्रद कुम्भयोग होता है । कर्के गुरुस्तथा भानुश्चन्द्रश्चद्रगिस्तथा । गोदावर्या तदा कुम्भो जायतेऽवनिमण्डले । । नासिक में कुम्भा के तीन स्नान होते हैं । वहां पर कुम्भ का प्रथम  ्नान ( प्रधान स्नान ) श्रावण ( सिंह राशि पर बृहस्पति , मंगल और सूर्य का संयोग होने से सिहस्थ योग होने पर ) में होता है । द्वितीय स्नान भाद्रपद की अमावस्या को होता है । तृतीया स्नान कार्तिक शुक्ल देवोत्थान एकादशी को होता है । इन तीनों स्नानों में सर्वप्रथम स्नान जना अखाड़े का , द्वितीय स्नान निर्वाणी अखाड़े का और ततीय स्नान निरंजनी अखाड़े का होता है । पश्चात अन्य सम्प्रदाय के लोगों का स नान होता है । dodcoodiodododododo d नासिक में कुम्भा का मेला लगातार चार मास तक रहता है । शास्त्रों में आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी ( देवोत्थान एकादशी ) तक साधओं के लिए ' चातुर्मास्य व्रत ' करने का समय निर्णीत किया है । यही चार मास नासिक के कुम्भ का समय होता है । अतः नासिक के कुम्भपर्व के अवसर पर

do मकरं च दिवानाधे जागे व बृहस्पता । कम्भयोगां भवंतत्र प्रयागे झतिदुर्लभः प्रयाग में कुम्भ के तीन स्नान होते है । यहां कुम्भ का प्रथम स्नान मकर संक्रान्ति ( मेषराशि पर बृहस्पति का संयोग होने पर ) से प्रारम्भ होता है । द्वितीय स्नान प्रधान स्नान ( माघ कृष्ण मौनी अमावस्या ) को होता है । तृतीय स्नान शुक्ल वसन्तपंचमी का होता है । इन तीनों स्नानों में सर्वप्रथम स्नान निर्वाणी अखाड़े का , द्वितीय स्नान निरंजनी अखाड़े का और तृतीय स्नान जूना अखाड़े का होता है । पश्चात समस्त सम्प्रदाय के लोगों का होता है । ( उज्जैन ( अवन्तिका ) ) मेषराशिंगते सूर्य सिंहराशी बृहस्पती । । उज्जयिन्यां भवेत् कम्भः सदा मुक्तिप्रदायकः । । जिस समय सूर्य मेषराशि पर हो और बृहस्पति सिंहराशि पर हो तो उस समय उज्जैन में कुम्भ योग होता विशिविर घटे : सूरि शशी सूर्य : कहाँ दामोदरे ( कार्तिक ) यदा । धारायां च तदा कुम्भो जायते खलु मुक्तिदः । । उज्जैन में काम के निमित्त सिर्फ एक ही दिन स्नान होता है । यहां पर वैशाख मास के शुक्र पक्ष में अर्थात जिस दिन सूर्य मेष राशि पर हो और बृहस्पति सिंहराशि पर हो तो उज्जैन में कुम्भ स्नान का लगन आता है । अत : यहां का निर्वाणी , निरंजनी तथा जूना इन तीनों 8 अखाड़ों के साधुओं का और अन्य समस्त सम्प्रदाय के लोगों का एक साथ ही ' शिप्रा ' नामक नदी में स्नान होता . POPC उज्जैन यह ' उज्जयिनी ' शब्द का अपभ्रंश है । उज्जयिनी का प्राचीन नाम ' विशाला ' अथवा ' अवन्ती ' है । 90

योग होता है । वसन्ते विषवं चैव घट देवपुरोहिते गंगाद्वारे च कामाख्यः सुधामति नरा यतः । हरिद्वार में कम्भ के तीन स्नान होते हैं । यह काभ का प्रथम स्नान शिवरात्रि से प्रारम्भ होता है । द्वितीय स्नान चैत्र की अमावस्या को होता है । तृतीय स्वात ( प्रधान स्नान ) चैत्र के अन्त में अथवा वैशाख के प्रथय । 5 दिन में अर्थात जिस दिन बृहस्पति कुम्भराशि पर और सर्य । मेषराशि पर हो उस दिन कुम्भ स्नान होता है । इस तीना । स्नानों में सर्वप्रथम स्नान निर - जनी अखाड़े का , द्वितीय स्नान । निर्वाणी अखाड़े का और तृतीय स्नान जूना अखाड़े का । होता है । उक्त तीनों सम्प्रदायों के स्नान करने के बाद अन्य समस्त सम्प्रदाय वाले साधुओं और गृहस्थों का स्नान होता है । तीर्थराज - प्रयाग मेषराशिंगते जीवे मकरे चन्द्रभास्करी । अमावस्या तदा योग : कुम्भाख्यस्तीर्थनायके । । स्क पु० ) जिस समय बृहस्पति मेषराशि पर स्थित हो तथा चन्द्रमा और सूर्य मकर राशि पर हो तो उस समय तीर्थराज प्रयाग में कुम्भा योग होता है । HD ०२०९०९०९०९०९

जय श्री राधे ।

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